मुस्कुराता हुआ, ज़िम्मेदार, सांस्कृतिक व्यक्तित्व
सुनील मिश्र प्रतिष्ठित फ़िल्म आलोचक, सांस्कृतिक पत्रकार, और मध्य प्रदेश की संस्कृति क्षेत्र से जुड़े व्यक्तित्व थे। आप भोपाल मध्यप्रदेश से सक्रिय रहे और कला-संस्कृति की दुनिया में आपकी उपस्थिति की अहमियत थी। सुनील मिश्र को “गंभीर सिनेमा” पर लेखन के लिए जाना जाता था। लगभग बीस वर्ष से अधिक समय से सिनेमा-विश्लेषणात्मक लेख लिखे; आपके लेख नियमित रूप से राष्ट्र के लोकप्रिय और प्रतिष्ठित अख़बारों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। आप समीक्षा-विश्लेषण, सिनेमा-संवाद और सिनेमा-कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल रहे। आकाशवाणी, दूरदर्शन और अन्य चैनलों के लिए सिनेमा-केंद्रित कार्यक्रमों का समन्वय-संयोजन किया। साथ ही हवलदार महावीर प्रसाद, गजमोक्ष, ऐसे रहो की धरती, शबरी, सतरूपा आदि नाटकों की रचना की।
सुनील मिश्र “माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय” में पत्रकारिता एवं सिनेमा का पाठ पढ़ाते रहे, आपकी लेखन शैली गहराई, शोधपरक दृष्टिकोण और सोच-विमर्श युक्त होती थी। आपकी कल और साहित्य के प्रति जुनून के कारण ही इंस्टाग्राम पर 100 से अधिक कलाकारों के लाइव साक्षात्कार किए थे, जिन्हें व्यूअर्स ने सहर्ष स्वीकारा। आपको “सिनेमा पर समीक्षा लेखन की श्रेणी में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ था। सुनील मिश्र की भाषा न तो अज्ञेय की तरह साहित्यिक और बौद्धिक है और ना ही निर्मल वर्मा की भाषा की तरह मदमाती है परन्तु आपकी सरलता प्रत्येक वाक्य के उद्घाटन और समापन में दिखती है। हम सभी के लिए आप सुनील भाई थे सहज प्राप्त होने वाले हितकारी थे।
आपका निधन कोरोना महामारी के समय हुआ, जिससे प्रदेश की कला और संस्कृति क्षेत्र में आई रिक्तता आज भी मस्तिष्क में गूंज मचाती रहती है। नाटक, कला, साहित्य और संस्कृति जगत से जुड़े लोग उन्हें एक सक्रिय, मुस्कुराते हुए, ज़िम्मेदार सांस्कृतिक व्यक्तित्व कहते थे आपकी लेखनी, समीक्षा-शैली और सिनेमा-संवाद की विरासत आज भी हम लोगों को प्रेरणा देती है जो निरन्तर कला और संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय हैं। आप मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग में कार्यरत थे। विज्ञान एवं तकनीकी शब्दावली आयोग (भारत सरकार) द्वारा सिनेमा एवं रंगमंच पर बनाए गए परिभाषा-कोश की सलाहकार समिति में आपका नाम भी शामिल है
आप मध्यप्रदेश में संस्कृति की उर्वर भूमि के मेहनतकश कृषक थे आपने प्रदेश के गीत,संगीत, नृत्य, कविता, साहित्य, कला सभी को समान सम्मान दिया।
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