शनिवार, 16 मई 2020

सवाल - जवाब

सवाल - जवाब

इन प्रश्नों के ऐसे उत्तर होने चाहिए।

क्यों?

क्यों नहीं।

कैसे?

ऐसे य चाहे जैसे।

क्या?

यही सब य आप बताएं।

कब?

तुरन्त।

कहॉ?

यहीं य कहीं भी।

कौन?

आप, मैं, हम सब।

नहीं?

हाँ,हाँ,हाँ।

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

बितानी के किस्से भाग 10

बितानी के किस्से भाग 10

।।#अद्भुत #किस्से #बितानी।।
https://youtu.be/SNrdxc14H44
आपका अपना यूट्यूब चैनल

"लोक कथालोक lok kathalok"
#रीवा #राज्य में लोक के अद्भुत, प्रसिद्ध चरित्र *बितानी भाई* है। इनकी लंबाई एक बित्ता की थी जिस कारण से इनका नाम बितानी पड़ा और प्रसिद्ध हुआ। लेकिन दुनिया को अपनी सूझबूझ से चकित कर देता है हमारा बितानी। लोक कथाओं में बितानी के कारनामों के किस्से क्षेत्र का प्रत्येक मनुष्य अपनी दादी नानी से अवश्य ही सुन रखा है। हर समय पर बितानी के किस्से हैं जिनसे चुनकर आपको सुनाते है।
"लोक कथालोक lok kathalok" यूट्यूब चैनल पर लोककथाओं को सुन सकते है भाव के साथ।

प्रत्येक दिवस आपके लिए नई लोककथाएं संग्रहित की जा रही हैं।

'लोक कथालोक lok kathalok' चैनल को अधिक से अधिक #शेयर करें, बेल आइकन दबाएं ताकि आप तक ये कथाएँ पहले पहुंचे।

बच्चों के लिए दादी नानी की कथाओं के साथ आदि लोककथा, पंचतंत्र, हितोपदेश, जातक कथाएं साथ ही सदियों पुरानी कथाएं सुनने को मिलेगी।

स्वयं सुने फिर रास्ता बनाते हुए अपनी कल्पना, अनुभव और स्मरण शक्ति से विस्तार दे करके बच्चों को सुनाएं।

और फिर बच्चों से सुनाने के लिए कहें। इस तरह से बच्चों के स्मरण में विकास होगा।
लोक कथाओं को संरक्षित करने का प्रयास करते रहें खुशी मिलेगी बचपन में लौटकर....
किस्सा मनुष्यों मनुष्य के सदियों में प्राप्त अनुभवजन्य ज्ञान से बनता है। लोक के किस्सों में नायक के विरोधी की मृत्यु नहीं होती है अपितु य्या तो क्षमा कर दिया जाता है य फिर स्वयं ही बच जाता है। किस्सा सुनाना परम्परा में प्रतिदिन किस्सा…..
https://youtu.be/SNrdxc14H44

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

जीवन का सत्य

फैसले सही और गलत के बीच में फंस जाते है तब .......

यानी आप संशय में फंस जाते है सही रास्ता नहीं सूझता, अस्पष्टता की इस्थिति निर्मित होती है अर्थात सोच को समझने की क्षमता अपेक्षाकृत कमजोर होती जा रही है।  ऐसे समय में सत्य और असत्य में फर्क करना आसान नहीं होता मनुष्य की मानवता और उसके अंदर की अच्छाई के साथ लोगों पर विश्वास भी किया जाना चाहिए कभी-कभी ऐसी स्थितियों में लोग फायदा उठाने की का अनुचित प्रयास करते हैं प्रकृति ने प्रत्येक जीवन में चार मूल प्रकृति या दी है भूख नींद डर एवं वंश वृद्धि किंतु मनुष्य में विवेक देकर उसे अन्य जीवो से अलग स्थान दिया है जिससे मनुष्य सत्य एवं असत्य उचित एवं अनुचित के बीच अंतर कर पाने की सूझबूझ प्राप्त करता है।

 कुछ लोग तर्क वितर्क करके उसकी आड़ लेकर मानवी संकेतों को दबा देते हैं उनके लिए सही और गलत उचित और अनुचित में फर्क कर पाना आसान नहीं रह जाता ऐसे लोगों का मन अंतरात्मा की आवाज दबा कर अपने अनुचित कृत्य के लिए भी कोई ना कोई उचित तर्क ढूंढ लेता है चाणक्य के अनुसार

 किंतु यदि हमें सही गलत तथा उचित अनुचित के बीच अंतर जानना है तो अपने विचार यह कार्य करने से पहले इधर-उधर भागने के बजाय हमें अपनी अंतरात्मा की ओर उन्मुख होना चाहिए मानवी प्रकृत में विवेक पर भरोसा करना चाहिए अंतरात्मा पर विश्वास करना चाहिए जरूरत है अंतरात्मा को पहचानने की जिसमें किसी भी तरह के कुंठित प्रयास नहीं होते हैं

अंतरात्मा जो सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की बात करता है और फिर मनुष्य की सफलता किसी विशेष कालखंड में सफल या असफल होने के आधार पर नहीं अपितु उसके पूर्ण जीवन काल के आधार पर निर्णय करना चाहिए जीवन सफल हुआ अथवा नहीं।

बाली लोक कथालोक

बाली (लोक कथालोक)

त्रेता युग में राम जब अपनी जानकी की पतासाजी करते हुए सुग्रीव के पास पहुंचते है। तब सुग्रीव अपने और भाई बालि के संबंधों के बारे में पूरी सच्चाई बताते है तब राम ओट में छिपकर सुग्रीव और बालि के छद्मयुध्य में बाली को अपने बाण से घायल कर देते है। बालि राम से छुपा कर मारने का कारण पूँछता है तब राम नैतिकता का सार बताते है और मृत्यु को प्राप्त होते बालि को वरदान देते है कि दुनिया में तुम्हारा नाम अमर रहेगा तुम में अपने विरोधी योद्धा की आधी शक्ति तुम सोख लेते हो इस गुन से ही तुम अनाज के पौधे में सारे अनाज को पुष्पित पल्लवित और विकसित करके अन्न बनाकर उसे मजबूत कवच में सुरक्षित करोगे, जिसका नाम बालि होगा।

बाली अनाज को कई गुणा बना देता है।

शनिवार, 14 मार्च 2020

कस्बों का साधन विहीन रंगमंच

छोटे शहरों, तहसीलों में आधुनिक रंगमंच साधनहीन होने के साथ साथ बहुत खर्चीला और श्रमसाध्य है इसलिए कस्बों में काम करने वाले कलाकार/अभिनेता कुछ समय खड़े होकर देखते है कुछ कदम साथ चलकर रास्ता बदल लेते हैं य्या जगह छोड़ देते है। नाटक करने के लिए हमारे और उनके पास शादियों और तेरहवीं सम्पन्न कराने वाले भवन, मैदान या खेत ही होते हैं जिनमें बहुत मशक्कत करके कलाकारों को ही स्वयं पर्दे माइक और लाइट टांगने होते हैं । इन गूंजते भवनों में कलाकारों की महीनों की मेहनत नष्ट कर देने की अदम्य और अद्भुत ताकत हैं।

 उधर नाटक के 3 घंटे यह कलाकार की जिंदगी का सबसे अच्छा अवसर होता है जब हम मंच पर रहते है। हम अच्छा करें या खराब पर ये 3 घंटे हमें जिंदगी भर याद रहता है। नाटक कैसे करना है ये आज अब निर्देशक नहीं बताएगा। निर्देशक कहेगा *जाओ ये 3 घंटे जी भरकर नाटक कर लो* क्योंकि इन 3 घंटों के बाद के जीवन में चाहे अच्छा करों या बुरा, अद्भुत करों या भयानक पर यह गया समय/परिस्थिति दुबारा कभी नहीं आएगा। समय के साथ साथ परिस्थितियों में बदलाव होगा। क्योंकि यदि इन 3 घंटों में आपने अपना सबसे खूबसूरत अभिनय किया तो जहाँन भर की ताकत भी आपको नज़रंदाज़ नहीं कर सकती। इसी विश्वास के साथ मंच पर कलाकार उतरता है। संभावनाशील कलाकार होता है तो जल्दी ही वहां से निकालकर महानगरों में पलायन कर जाते है। महानगरों की हवा लगते ही स्क्रिप्ट पर बात करने से पहले मानदेय/पेमेन्ट की बात करते है।

ऐसे कम ही उदाहरण देखने में आते  हैं कि जन सहयोग से किसी नाट्य समूह ने सक्रिय रंगकर्म करते हुए लम्बा रास्ता तय किया हो। मण्डप इन्हीं विपरीत परिस्थितियों में काम करते हुए रंगकर्म के क्षेत्र में 12 साल से ज़्यादा का सफर तय किया है।

खूबसूरत नाटक के अद्भुत क्षण

https://youtu.be/WdeWAyXsUuo

बुधवार, 29 जनवरी 2020

देहात लोक रंगपर्व 2020 हिनौता दूसरा दिन

देहात लोक रंगपर्व 2020 की दूसरे दिवस हुआ नाटक चिड़ियाघर का मंचन

नाटक के कलाकार दोपहर में पूर्वाभ्यास कर रहे थे, टी पी एस स्कूल की आधी छुट्टी में छात्रों ने देखा और प्रबंधक श्री योगेन्द्र सिंह जी से अनुरोध किया कि नाटक मंचन हमें देखना है किंतु हम रात को नहीं आ सकते है क्या हम अभी पूरा नाटक देखा सकते है जिसका प्रस्ताव श्री सिंह ने आयोजक एवं निर्देशक आनंद प्रकाश मिश्रा के समक्ष रखा, जिसे कलाकारों ने सहयोगी कलाकारों के साथ निर्देशक की सहमति से स्वीकार किया और दोपहर डेढ़ बजे से छात्रों के लिए प्रस्तुति हुई। नाटक में छात्र भावविभोर हो गए नाटक के दौरान तियों से अपनी खुशी जाहिर की।

साथ ही देहात लोक रंगपर्व की दूसरी शाम वरिष्ठ समाजसेवी दादा अशोक सिंह एवं मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के आनन्द मिश्रा ने माता सरस्वती के तस्वीर पर पुष्प अर्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ किया। पहली प्रस्तुति नाटक चिड़ियाघर का मंचन थर्ड बेल के बाद आरम्भ हो गया। नाटक आम आदमी के आजीविका के तलाश की कहानी है चिड़ियाघर में प्राणी संग्रहालय में संरक्षक के पद के सूचना जारी हुई है जिसमें आदमी से आदमी होने का प्रमाणपत्र मांगा जाता है, राष्ट्रीय प्रमाण पत्र कार्यालय में आदमी होने का प्रमाणपत्र बनवाने जाता है। आदमी के पास न तो सिफारिश है ना ही रिश्वत, वह आदमी भ्रष्ट समाज के चंगुल में फंस जाता हैI तब भ्रष्ट अधिकारी उसमें जानवर होने के लक्षण खोज लेता है आदमी को जानवर होने का प्रमाणपत्र बना दिया जाता हैI समाज में अधिकारी बने आदमियों और सिर्फ आदमी बने रहने के संघर्ष की कहानी है। नाटक के अंत में आदमी को जानवर के बाड़े में डाल दिया जाता है।

नाटक में अनुज द्विवेदी ने आम आदमी का किरदार बड़ी ही खूबसूरती से निभाया आम आदमी की जीवटता और संघर्ष को उजागर किया, शैलेन्द्र रघुवंशी -मैनेजर एवं परीक्षक की भूमिका में न्याय किया, साक्षी शुक्ला - माँ एवं साधू की शिष्या में अलग ही रूप में नज़र आईं, भूमिका ठाकुर - शिष्या, प्रियांशू ठाकुर गुंडा के चरित्र में जान डाल दी, हेमराज तिवारी - गवाह एवं गूगा के चरित्र ने मां मोह लिया, सुमुख मिश्रा, प्रमाणपत्र परीक्षक सहायक, आमिर खान - चौकीदार ने चरित्र को जिया, शिवेंद्र चक्रवर्ती बप्पा ने स्वामी जी एवं गवाह की भूमिका में चरित्रों की अन्तर्भावन को जीवंत किया, कर्णप्रिय सुमधुर संगीत की परिकल्पना सुरेन्द्र वानखेड़े की थी, तालवाद्य पर प्रशांत श्रीवास्तव थे  वेशभूषा - रचना मिश्रा, प्रकाश परिकल्पना - मनोज मिश्रा, लेखक - हेमंत देवलेकर, निर्देशक - आनन्द प्रकाश मिश्रा प्रस्तुति सघन सोसाइटी फॉर कल्चरल एवं वेलफेयर सोसाइटी भोपाल की थी नाटक के बारे में अंतिम बात ऐसे नाटक बार बार देखे जाने चाहिए।

कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति लोकगीत एवं भजनों को दर्शक श्रोताओं ने यशो शास्त्री एवं दल से सुना। गायक यशो शास्त्री ने 

अपनी प्रस्तुति में कई सुरीले एवं भावप्रद गीतों की रचनाएं सुनाए जिन्हें दर्शक श्रोताओं सिर माथे पर रखा। यशो ने  तुम्हें बुलाते है गजानन, मेरे अलबेले अलबेले राम, ए जी खेलत रहौ बालू रेत मुदारिया मोरी यहां रे गिरी, अयोध्या सी नगरी हो लक्षमण से भाई हो, के जी राम जी के चढ़त चढ़ाव, आदि गीतों से मन मोह लिया। इनके साथ साथी कलाकार के रूप में प्रांजल द्विवेदी आर्गन पर, अमन सिंह तबला, अमित सोनी आक्टोपैड।  कार्यक्रम के अंत में योगेन्द्र सिंह जी ने निर्देशक आनंद मिश्रा को पुष्प हार पहनाकर अभिनंदन किया, एवं सुरेन्द्र वानखेड़े का अभिनंदन अशोक सिंह ने किया। यशो शास्त्री का अभिनंदन राजेन्द्र सिंह जी ने किया। कलाकारों एवं समस्त दर्शकों का आभार समाजसेवी योगेन्द्र सिंह जी ने दिया।

रविवार, 26 जनवरी 2020

लोक लघुकथा दो पाट

#लघुकथा_दो_पाट
एक बार की बात है।
कलाकार को राजा के दरबार में पकड़ कर लाया गया। राजा ने कलाकार को आदेश दिया। कलाकार अपने अभिनय से हमें रुला दो। कलाकार ने प्रसंग सुनाया तो राजा के साथ दरबारियों के आंखों से आँसू की धार निकल पड़ी।
फिर राजा ने कहा अब हमें हँसाओ, कलाकार ने एक घटना दिखाई राजा के साथ दरबारी हंसते हंसते पेट के बल गिर पड़ते हैI
राजा ने कहा कलाकार माँग क्या मांगता हैI कलाकार उत्तर दिया राजन मैं चाहता हूं कि आप मेरी कलाकारी पूरे जीवन में कभी न देखें।
राजा ने कहा क्यों?
कलाकार ने उत्तर दिया , कारण साफ है महाराज आप सिंघासन त्याग देंगे तो दूसरा व्यक्ति राजा बन जाएगा किंतु अगर मैं मर गया तो दूसरा कलाकार नहीं बनेगा।।

लोक लघुकथा ख़ानसामा

#लघुकथा #ख़ानसामा
#लोककथा
ऐसे ऐसे एक राजा थे खाना खा रहे थे। सब्जी में नमक कम था ख़ानसामा को बुलवाया और पूँछा सब्जी में नमक कम कैसे हो गया। ख़ानसामा चुप रहा राजा के आततायी रूप को जानता था। सज़ा के रूप में मौत को गले लगाना पड़ सकता हैI ख़ानसामा के विचार के अनुरूप ही राजा ने ख़ानसामा को अपने शिकारी जंगली कुत्तों के बाड़े में जिंदा फेंक देने का आदेश दिया।
ख़ानसामा ने गुजारिश की राजन मैं आपकी सेवा 40 बरस से लगातार कर रहा हूँ मेरा बनाया भोजन ही आपकी पसंद हैI मेरे न रहने पर आपके लिए भोजन कौन पकाएगा। राजा ने कुछ सोचा और ख़ानसामा को दी मौत की सज़ा को 10 दिन के लिए रोक दिया। इधर इन्ही दस दिनों में नया ख़ानसामा ढूंढने के लिए आदेश जारी कर दिया गया।
उधर इन दस दिनों में ख़ानसामा ने उन्हीं जंगली शिकारी कुत्तों को बहुत प्यार दिया परम स्वादिष्ट भोजन दिया। उनके ही पास रहने लगा। दस दिनों के बाद जब राजा के आदेश को पूरा करने के लिए ख़ानसामा को जंगली कुत्तों के बाड़े में फेंक गया तब कुत्ते प्यार से ख़ानसामा को चाटने लगे, दुम हिलाने लगे। राजा को ख़बर मिली। ख़ानसामा को बड़े से निकलवाकर अपने पास बुलाया और पूँछा यह सब कैसे हुआ। ख़ानसामा ने जवाब दिया मैंने दस दिन कुत्तों को प्रेम से भोजन कराया उन्होंने प्रेमवश मुझे जीवनदान दिया उधर 40 साल आपके लिए भोजन बनाया आपने भोजन में नमक कम होने की सज़ा में जंगली कुत्तों के बाड़े में डलवा दिया। आपसे तो कुत्ते अच्छे।
राजा को बात लग गई राजा ने भूल सुधारा,  मुझसे कुत्तों को समझने में ग़लती हो गई हैI इस ख़ानसामा को मगरमच्छ के बाड़े में डालो, बिना किसी देरी के, ख़ानसामा आर्तनाद करता रहा।
#ज़ुबानकोलगाम

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

नाटक देखने के फ़ायदे

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के क्रिसमस संस्करण में प्रकाशित किया गया है जो
इन्सान प्रत्येक महीने में रंगमचीय प्रस्तुतियों को देखता है वह सामान्य
से ज्यादा स्वस्थ रहता है| समान्य से ज्यादा सुकून में रहता है| रोगों और
व्याधियों का खतरा कम होता, मन प्रफुल्लित और सकारत्मक उर्जा से भरा रहता
है| रंगमंचीय प्रस्तुतियों में नाटक, नृत्य, गायन, वादन, जादू, सर्कस,
पारिवारिक फिल्में आदि विधाओं को शामिल किया गया था|
शोध में रंगमंचीय प्रस्तुतियों के साथ ही कला संग्रहालयों को भी शामिल
किया गया है| इन संग्रहालयों में मनुष्य तस्वीरों को देखता है रंगों को
देखता है| रेखाओं को देखता है| संरचना को देखता है भावों पर विचार करता
है इससे दिमाग़ संतुलित होता है उसमें सोचने, समझने और समझाने की
प्रवृत्ति भी उभरती है|
यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि आप यदि लम्बी
ज़िन्दगी जीना चाहते है| तो इसके लिए आपको महीने में एक बार सभागारों,
संग्रहालयों, आर्ट गैलरियों, सिनेमाघरों में घूमने जाना चाहिए|
शोधकर्ताओं ने 50 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 7000 वयस्क व्यक्तियों के
सेहद पर लगातार 12 वर्ष तक यह शोध किया है| और पाया कि जो लोग रंगमंच की
किसी भी विधा को लगातार देखते रहते है और उन्हें पसंद करते रहते है
उन्हें देखने जाते रहते है| उनकी जल्दी मृत्यु के जोखिम में 31 प्रतिशत
की कटौती हो जाती है| इस शोध में लन्दन के शोधकर्ताओं ने दावा किया गया
है| कि हर महीने एक बार रंगमंच देखने से किसी भी व्यक्ति की जल्दी मौत
होने का खतरा कम हो जाता है| शोधकर्ताओं ने पाया कि कला से जुड़े लोगों की
मृत्यु की संभावना में 14 प्रतिशत की कमी थी| शोध में ऐसे साक्ष्य मिले
है कि जो लोग कला से जुड़े रहे, चाहे वे तस्वीरों की तारीफ ही कर रहे है|
परन्तु उनके स्वस्थ को लाभ पहुंचा है| शोधकर्ताओं ने कहा कि महीने में
सिर्फ एक बार भी थियेटर जाने से व्यक्ति के मानसिक स्वस्थ में सुधार हो
सकता है| और रंगमंच व्यक्ति के शारीरिक गतिविधियों को भी प्रोत्साहित कर
सकती है| हालांकि मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक गतिविधियों को विशेष ध्यान
में रखते हुए आर्ट गैलरी को लम्बी उम्र के साथ जोड़ कर शोध किया गया| शोध
के लेखक डॉक्टर डेजी फैन्कोर्ट ने कहा की इस बात के लिए अभी और परीक्षण
करने की जरूरत है कि रंगमंच में जाने से जल्दी होने वाली मौतों को कैसे
रोका जा सकता है| डॉक्टर डेजी फैन्कोर्ट ने प्रतिभागियों को औसतन 12 वर्ष तक देखा और इस नतीजे तक पहुंची|