गुरुवार, 22 नवंबर 2018

अमर शहीद ठाकुर रणमत सिंह

*अमर *शहीद *ठाकुर *रणमत *सिंह *महानाट्य
ठाकुर रणमत सिंह के द्वारा गुरिल्ला सैनिको, पिंढारियों और अपने साथियों के साथ मिलकर प्रथम स्वतंत्रता से पहले ही अंग्रेजो को छोटे छोटे युद्ध में परास्त कर चुके थे। रणमत सिंह के प्रमुख साथियों में लाल श्यामशाह, रंजीत राय, दलथम्मन सिंह, धीर सिंह, पंजाब सिंह, सहामत अली आदि प्रमुख हैं। 1857 में मेरठ से उठी चिंगारी रीवा से होते हुE झाँसी की तरफ जा रही थी। संग्राम में कूदने का न्यौता मिला। विंध्य के महाराजा रघुराज सिंह जी देव में स्वीकार किया और मिलकर स्वतन्त्रता संग्राम में आहूति देने का वचन दिया। बघेलखण्ड में अपने सबसे विश्वासपात्र ठाकुर रणमत सिंह को स्वतन्त्रता का क्रांतिवीर नियुक्त किया। लगातार अंग्रेजों को कई युद्ध में परास्त किया। रणमत सिंह ने स्वतंत्रता के महासमर को बघेलखण्ड में जनक्रांति का रूप दे दिया था। जान सहयोग रणमत सिंह को मिल रहा था। वहीं आकस्मिक हमलों से अनजान अंग्रेजों को अपने सैनिकों से हाथ धोना पद रहा था इस कारण पॉलिटिकल एजेण्ट विलोबी आर्सवान रणमत सिंह से खफा था। रणमत सिंह के सर पर 2000 रूपए का ईनाम घोषित हो गया था। जालसाजी से माहाराज के दीवान के द्वारा रणमत सिंह को रीवा के जालपा मंदिर के तलघर में पकड़वा दिया था और 1860 में उन्हें फाँसी दी गई। परिवार के लोग का मत कुछ दूसरा है। नाटक में रणमत सिंह के रणचातुर्य और बहादुरी की चर्चा सथियों में सदैव रही। आप बघेलखं की भौगोलिक स्थिति एवं परिस्थितियों के अच्छे जानकार थे, जातियों और जनजातियों में आपके बातों को माना जाता था। आपकी बातें साथियों के लिए पत्थर की लकीर थी।

बाजारू रौनक

बाज़ार में रौनक
सोना बिक रहा है इधर
है बिक रही ककड़ी
गद्दा उस तरफ़ बेचा जाता है
यहाँ मिलता है जूता
वहाँ भोजन ले सकते है
उस गली में गोल गप्पे
ये गेहूँ-चावल की छल्लियाँ लगी
टपरे पर पान मिलेगा
कोने के ठेले पर चाय ले लो
इधर कहीं बिकता है पानी
अपने से नहीं आया
उतारा है इसे
उत्तर से दक्षिण उधर पूरब से पश्चिम
हमें खरीदना और बेचना आता है
बाज़ार बिमा कोई हैसियत नहीं हमारी

क्या हम बाज़ारू...?  है हम बाज़ारू।

रक्षक

कला
संस्कृति
सभ्यता
के रक्षक सिर्फ दो वर्ग हैं
उनके पोषक
उनके शोषक

क्यों

क्यों साथ नहीं चलता तुम्हारे?
तुम्हारे पीछे चलती है जनता
मैं
इंसानों के साथ रहता हूँ

संघर्ष

दिन में है तपन
सूर्यदेव अग्नि परोसते है,
और हम सिर्फ बहाते पसीना।
न सम्मान
न स्वाभिमान
न ही संतुष्टि।
सब है मजदूर
एक से दूसरे
दूसरे से तीसरे के।
न तू भाई है, न बहन
न माता है न पिता
न मित्र है, बेटा भी नहीं
है सर्फ मजदूर।
असर है यह .....
दिन में तपन है।
रात-ठंडी-शीतल है क्या?
मृत पड़े है सब, नींद के आगोश में
है यहाँ माता! पिता! पुत्र! सखा! बहन! भाई।
सम्मान जागा - स्वाभिमान भी साथ है।
स्वयं भू हैं हम-अब अपने मालिक हैं।
न है डर।
भय भी नहीं है।
रात की गोद में
नींद के चादर में लिपटे
मीठे स्वप्न बाहों में भरे
दुनिया के मजदूरों की मजदूरी से बेखबर मस्त सो रहे है हम।

बुधवार, 14 नवंबर 2018

रीत प्रीत की

हुनर मक्कारी का क्या खूब सीखा है।
नाम याद रखते हो काम भूल जाते हो।।

प्रिय हो, प्रियतम हो, प्रेयसी हो।
रंग हो, रंगकर्म हो, रंगमंच हो।।

खैर तुम अपने हो, वो अब नज़दीक नहीं दिल के।
रैन गई, रीत गयी, प्रीत भई, सीख भई।।

सोमवार, 12 नवंबर 2018

पलायन

पलायन जारी है|
हर कामकाजी छोड रहा है
अपने
हिस्से का सूरज |
कोई है जो जानता है
काम को कैसे समाप्त करना है
हम तो मानते है |
जनता है
जो सताई जा रही है|
हम छोटे स्वार्थ भी नहीं पूरे करते |
पर कोई है जो सब करता है
नैतिक
अनैतिक
डंके की चोट पर |
इंतजार है हमें किसी का