हुनर मक्कारी का क्या खूब सीखा है। नाम याद रखते हो काम भूल जाते हो।।
प्रिय हो, प्रियतम हो, प्रेयसी हो। रंग हो, रंगकर्म हो, रंगमंच हो।।
खैर तुम अपने हो, वो अब नज़दीक नहीं दिल के। रैन गई, रीत गयी, प्रीत भई, सीख भई।।
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