मंगलवार, 12 मार्च 2013

अधूरी कविता


अधूरी कविता 

[पूरी न हो पाने के कारण ]





तेरे जाने पर याद आया |
पत्नी ने बताया था
‘‘कोई आने वाला है’’
मुस्कराहट,शर्म ,झुकी नज़र
सब तो याद है |
दाई ने बताया बेटा है
माँ गा रही थी सोहर |
लोगो की गोद से
छलांग मार कर
पहली बार उंगली पकड़ी थी
वो भी याद है |
तुम चल रहे थे मेरी
उंगली के सहारे के बगैर
स्कूल के वेश मे देखा था |
फिर पकड़ा था मेरी उंगली
पाठशाला के लिए |
हमने सौपा था दूसरे के हाथ मे
हर दिन ध्यान मे सिर्फ तुम होते |
विद्यालय,महाविद्यालय फिर
विश्वविद्यालय सब याद है
ट्यूशन कर के
अपनी मंजिल की तरफ
बढे थे बिन उंगली पकडे |
वो खुशी जो तुमने हमें दी
व्याह कर लाए थे परीजाद |
तुम आई.पी.एस. थे
हमारे पाव खुशी से
थे हवा मे |
गाँव खुश था,शहर खुश था
दोस्त खुश थे परिवार भी |
पर जाने किसे ये खुशी रास ना आई
संदेशा आया तेरे जाने का |
कभी फिर वापस ना आने का |
विश्वास कर ले हम कैसे
उंगली पकड़ चलनेवाला हाथ कट गया |
ड्रेस पहने सीना छलनी हो गया |
व्याहता हो गई विधवा  |
तेरी यादो ने वादों का रूप धरा है
जो न जानता था नाम तेरा
न हमारा मालूम था पता|
तेरे जाने से याद आया
अब बाबूजी नहीं है कहनेवाला
नहीं है रूठनेवाला
न ही मनानेवाला|
तेरे जाने से याद आया ||
                                    [ मनोज मिश्रा,रीवा ]

शनिवार, 2 मार्च 2013

कला के नाम पहला प्रेमपत्र

कला
मेरा पहला पत्र तुम्हे स्वीकार हो ना या न हो पर लिखना आवश्यक है | यह पत्र एक अनुबंध पत्र है मेरा तुम्हारे लिए,क्योकि प्रकृति ने मुझे बनाया है और तुम्हे बनाया है |मै तुम्हे जानना नहीं समझाना चाहता हूँ ................
प्यार करता हूँ ........मेरा प्यार कोई क्षणिक आकर्षण नहीं न मोह है न हवस है न वासना है ..ये तो समर्पण है .......इच्छा है मेरी की कभी तो मेरी गली मे आओ या मै जो कोशिश करता हूँ रोज तुम्हारी गली मे जाने की तो काम से काम खिडकी से ही तो देखो वैसे दिल को इससे सुकून तो न होगा पर समझ लूगा की

 ''दरवाज़ा खोले है यार मेरा
  राज़दार मुझे भी चाहता हूँ ''

जबकि मुझे पूरा यकीन है यार मेरा ,मेरे ही दूसरे मित्रों का आशिक है और मैं दरवेश यहाँ से वहाँ ,वहाँ से सारे जहाँ भटक रहा हूँ खोज रहा हूँ की काश कभी न कभी तो मिलेगा ही मध्य भारत ,दक्षिण भारत |
इसी तरह चला तो पूरा भारत ही कला की परिभाषा नहीं दे पायेगा | आज एक,कल दूसरा फिर अगला ऐसे करते-करते कई चरित्र करे - कराये पर कला समझ न आई |समय कम है मै क्या करू तुम्हें साथ के लिए,प्रति दिन -प्रति रातें,दोपहर-सुबह,हर समय ........समय के हर टुकड़े मे तुम्हें देखना हैं ,बसना चाहता हूँ तुम्हारी यादों मे ,तुम्हारे हर रूप से प्यार है मुझे ......वो दिन दूर नहीं की तुम्हारा साथ मिलाने के बाद हमारी पहचान होगी तुम्हारे नाम से ,और मैं खुद कला का ही रूप धारण कर लू ,तुम्हारे नाम मे समां जाऊ ताकि कही इस्तेमाल हो सकू और तेरी प्रसिद्ध मे खुद को फनाकर सकूं और रुखसत हो जाऊ |



तुम्हारा
सिर्फ तुम्हारा