बुधवार, 29 जनवरी 2020

देहात लोक रंगपर्व 2020 हिनौता दूसरा दिन

देहात लोक रंगपर्व 2020 की दूसरे दिवस हुआ नाटक चिड़ियाघर का मंचन

नाटक के कलाकार दोपहर में पूर्वाभ्यास कर रहे थे, टी पी एस स्कूल की आधी छुट्टी में छात्रों ने देखा और प्रबंधक श्री योगेन्द्र सिंह जी से अनुरोध किया कि नाटक मंचन हमें देखना है किंतु हम रात को नहीं आ सकते है क्या हम अभी पूरा नाटक देखा सकते है जिसका प्रस्ताव श्री सिंह ने आयोजक एवं निर्देशक आनंद प्रकाश मिश्रा के समक्ष रखा, जिसे कलाकारों ने सहयोगी कलाकारों के साथ निर्देशक की सहमति से स्वीकार किया और दोपहर डेढ़ बजे से छात्रों के लिए प्रस्तुति हुई। नाटक में छात्र भावविभोर हो गए नाटक के दौरान तियों से अपनी खुशी जाहिर की।

साथ ही देहात लोक रंगपर्व की दूसरी शाम वरिष्ठ समाजसेवी दादा अशोक सिंह एवं मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के आनन्द मिश्रा ने माता सरस्वती के तस्वीर पर पुष्प अर्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ किया। पहली प्रस्तुति नाटक चिड़ियाघर का मंचन थर्ड बेल के बाद आरम्भ हो गया। नाटक आम आदमी के आजीविका के तलाश की कहानी है चिड़ियाघर में प्राणी संग्रहालय में संरक्षक के पद के सूचना जारी हुई है जिसमें आदमी से आदमी होने का प्रमाणपत्र मांगा जाता है, राष्ट्रीय प्रमाण पत्र कार्यालय में आदमी होने का प्रमाणपत्र बनवाने जाता है। आदमी के पास न तो सिफारिश है ना ही रिश्वत, वह आदमी भ्रष्ट समाज के चंगुल में फंस जाता हैI तब भ्रष्ट अधिकारी उसमें जानवर होने के लक्षण खोज लेता है आदमी को जानवर होने का प्रमाणपत्र बना दिया जाता हैI समाज में अधिकारी बने आदमियों और सिर्फ आदमी बने रहने के संघर्ष की कहानी है। नाटक के अंत में आदमी को जानवर के बाड़े में डाल दिया जाता है।

नाटक में अनुज द्विवेदी ने आम आदमी का किरदार बड़ी ही खूबसूरती से निभाया आम आदमी की जीवटता और संघर्ष को उजागर किया, शैलेन्द्र रघुवंशी -मैनेजर एवं परीक्षक की भूमिका में न्याय किया, साक्षी शुक्ला - माँ एवं साधू की शिष्या में अलग ही रूप में नज़र आईं, भूमिका ठाकुर - शिष्या, प्रियांशू ठाकुर गुंडा के चरित्र में जान डाल दी, हेमराज तिवारी - गवाह एवं गूगा के चरित्र ने मां मोह लिया, सुमुख मिश्रा, प्रमाणपत्र परीक्षक सहायक, आमिर खान - चौकीदार ने चरित्र को जिया, शिवेंद्र चक्रवर्ती बप्पा ने स्वामी जी एवं गवाह की भूमिका में चरित्रों की अन्तर्भावन को जीवंत किया, कर्णप्रिय सुमधुर संगीत की परिकल्पना सुरेन्द्र वानखेड़े की थी, तालवाद्य पर प्रशांत श्रीवास्तव थे  वेशभूषा - रचना मिश्रा, प्रकाश परिकल्पना - मनोज मिश्रा, लेखक - हेमंत देवलेकर, निर्देशक - आनन्द प्रकाश मिश्रा प्रस्तुति सघन सोसाइटी फॉर कल्चरल एवं वेलफेयर सोसाइटी भोपाल की थी नाटक के बारे में अंतिम बात ऐसे नाटक बार बार देखे जाने चाहिए।

कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति लोकगीत एवं भजनों को दर्शक श्रोताओं ने यशो शास्त्री एवं दल से सुना। गायक यशो शास्त्री ने 

अपनी प्रस्तुति में कई सुरीले एवं भावप्रद गीतों की रचनाएं सुनाए जिन्हें दर्शक श्रोताओं सिर माथे पर रखा। यशो ने  तुम्हें बुलाते है गजानन, मेरे अलबेले अलबेले राम, ए जी खेलत रहौ बालू रेत मुदारिया मोरी यहां रे गिरी, अयोध्या सी नगरी हो लक्षमण से भाई हो, के जी राम जी के चढ़त चढ़ाव, आदि गीतों से मन मोह लिया। इनके साथ साथी कलाकार के रूप में प्रांजल द्विवेदी आर्गन पर, अमन सिंह तबला, अमित सोनी आक्टोपैड।  कार्यक्रम के अंत में योगेन्द्र सिंह जी ने निर्देशक आनंद मिश्रा को पुष्प हार पहनाकर अभिनंदन किया, एवं सुरेन्द्र वानखेड़े का अभिनंदन अशोक सिंह ने किया। यशो शास्त्री का अभिनंदन राजेन्द्र सिंह जी ने किया। कलाकारों एवं समस्त दर्शकों का आभार समाजसेवी योगेन्द्र सिंह जी ने दिया।

रविवार, 26 जनवरी 2020

लोक लघुकथा दो पाट

#लघुकथा_दो_पाट
एक बार की बात है।
कलाकार को राजा के दरबार में पकड़ कर लाया गया। राजा ने कलाकार को आदेश दिया। कलाकार अपने अभिनय से हमें रुला दो। कलाकार ने प्रसंग सुनाया तो राजा के साथ दरबारियों के आंखों से आँसू की धार निकल पड़ी।
फिर राजा ने कहा अब हमें हँसाओ, कलाकार ने एक घटना दिखाई राजा के साथ दरबारी हंसते हंसते पेट के बल गिर पड़ते हैI
राजा ने कहा कलाकार माँग क्या मांगता हैI कलाकार उत्तर दिया राजन मैं चाहता हूं कि आप मेरी कलाकारी पूरे जीवन में कभी न देखें।
राजा ने कहा क्यों?
कलाकार ने उत्तर दिया , कारण साफ है महाराज आप सिंघासन त्याग देंगे तो दूसरा व्यक्ति राजा बन जाएगा किंतु अगर मैं मर गया तो दूसरा कलाकार नहीं बनेगा।।

लोक लघुकथा ख़ानसामा

#लघुकथा #ख़ानसामा
#लोककथा
ऐसे ऐसे एक राजा थे खाना खा रहे थे। सब्जी में नमक कम था ख़ानसामा को बुलवाया और पूँछा सब्जी में नमक कम कैसे हो गया। ख़ानसामा चुप रहा राजा के आततायी रूप को जानता था। सज़ा के रूप में मौत को गले लगाना पड़ सकता हैI ख़ानसामा के विचार के अनुरूप ही राजा ने ख़ानसामा को अपने शिकारी जंगली कुत्तों के बाड़े में जिंदा फेंक देने का आदेश दिया।
ख़ानसामा ने गुजारिश की राजन मैं आपकी सेवा 40 बरस से लगातार कर रहा हूँ मेरा बनाया भोजन ही आपकी पसंद हैI मेरे न रहने पर आपके लिए भोजन कौन पकाएगा। राजा ने कुछ सोचा और ख़ानसामा को दी मौत की सज़ा को 10 दिन के लिए रोक दिया। इधर इन्ही दस दिनों में नया ख़ानसामा ढूंढने के लिए आदेश जारी कर दिया गया।
उधर इन दस दिनों में ख़ानसामा ने उन्हीं जंगली शिकारी कुत्तों को बहुत प्यार दिया परम स्वादिष्ट भोजन दिया। उनके ही पास रहने लगा। दस दिनों के बाद जब राजा के आदेश को पूरा करने के लिए ख़ानसामा को जंगली कुत्तों के बाड़े में फेंक गया तब कुत्ते प्यार से ख़ानसामा को चाटने लगे, दुम हिलाने लगे। राजा को ख़बर मिली। ख़ानसामा को बड़े से निकलवाकर अपने पास बुलाया और पूँछा यह सब कैसे हुआ। ख़ानसामा ने जवाब दिया मैंने दस दिन कुत्तों को प्रेम से भोजन कराया उन्होंने प्रेमवश मुझे जीवनदान दिया उधर 40 साल आपके लिए भोजन बनाया आपने भोजन में नमक कम होने की सज़ा में जंगली कुत्तों के बाड़े में डलवा दिया। आपसे तो कुत्ते अच्छे।
राजा को बात लग गई राजा ने भूल सुधारा,  मुझसे कुत्तों को समझने में ग़लती हो गई हैI इस ख़ानसामा को मगरमच्छ के बाड़े में डालो, बिना किसी देरी के, ख़ानसामा आर्तनाद करता रहा।
#ज़ुबानकोलगाम

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

नाटक देखने के फ़ायदे

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के क्रिसमस संस्करण में प्रकाशित किया गया है जो
इन्सान प्रत्येक महीने में रंगमचीय प्रस्तुतियों को देखता है वह सामान्य
से ज्यादा स्वस्थ रहता है| समान्य से ज्यादा सुकून में रहता है| रोगों और
व्याधियों का खतरा कम होता, मन प्रफुल्लित और सकारत्मक उर्जा से भरा रहता
है| रंगमंचीय प्रस्तुतियों में नाटक, नृत्य, गायन, वादन, जादू, सर्कस,
पारिवारिक फिल्में आदि विधाओं को शामिल किया गया था|
शोध में रंगमंचीय प्रस्तुतियों के साथ ही कला संग्रहालयों को भी शामिल
किया गया है| इन संग्रहालयों में मनुष्य तस्वीरों को देखता है रंगों को
देखता है| रेखाओं को देखता है| संरचना को देखता है भावों पर विचार करता
है इससे दिमाग़ संतुलित होता है उसमें सोचने, समझने और समझाने की
प्रवृत्ति भी उभरती है|
यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि आप यदि लम्बी
ज़िन्दगी जीना चाहते है| तो इसके लिए आपको महीने में एक बार सभागारों,
संग्रहालयों, आर्ट गैलरियों, सिनेमाघरों में घूमने जाना चाहिए|
शोधकर्ताओं ने 50 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 7000 वयस्क व्यक्तियों के
सेहद पर लगातार 12 वर्ष तक यह शोध किया है| और पाया कि जो लोग रंगमंच की
किसी भी विधा को लगातार देखते रहते है और उन्हें पसंद करते रहते है
उन्हें देखने जाते रहते है| उनकी जल्दी मृत्यु के जोखिम में 31 प्रतिशत
की कटौती हो जाती है| इस शोध में लन्दन के शोधकर्ताओं ने दावा किया गया
है| कि हर महीने एक बार रंगमंच देखने से किसी भी व्यक्ति की जल्दी मौत
होने का खतरा कम हो जाता है| शोधकर्ताओं ने पाया कि कला से जुड़े लोगों की
मृत्यु की संभावना में 14 प्रतिशत की कमी थी| शोध में ऐसे साक्ष्य मिले
है कि जो लोग कला से जुड़े रहे, चाहे वे तस्वीरों की तारीफ ही कर रहे है|
परन्तु उनके स्वस्थ को लाभ पहुंचा है| शोधकर्ताओं ने कहा कि महीने में
सिर्फ एक बार भी थियेटर जाने से व्यक्ति के मानसिक स्वस्थ में सुधार हो
सकता है| और रंगमंच व्यक्ति के शारीरिक गतिविधियों को भी प्रोत्साहित कर
सकती है| हालांकि मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक गतिविधियों को विशेष ध्यान
में रखते हुए आर्ट गैलरी को लम्बी उम्र के साथ जोड़ कर शोध किया गया| शोध
के लेखक डॉक्टर डेजी फैन्कोर्ट ने कहा की इस बात के लिए अभी और परीक्षण
करने की जरूरत है कि रंगमंच में जाने से जल्दी होने वाली मौतों को कैसे
रोका जा सकता है| डॉक्टर डेजी फैन्कोर्ट ने प्रतिभागियों को औसतन 12 वर्ष तक देखा और इस नतीजे तक पहुंची|