#लघुकथा #ख़ानसामा
#लोककथा
ऐसे ऐसे एक राजा थे खाना खा रहे थे। सब्जी में नमक कम था ख़ानसामा को बुलवाया और पूँछा सब्जी में नमक कम कैसे हो गया। ख़ानसामा चुप रहा राजा के आततायी रूप को जानता था। सज़ा के रूप में मौत को गले लगाना पड़ सकता हैI ख़ानसामा के विचार के अनुरूप ही राजा ने ख़ानसामा को अपने शिकारी जंगली कुत्तों के बाड़े में जिंदा फेंक देने का आदेश दिया।
ख़ानसामा ने गुजारिश की राजन मैं आपकी सेवा 40 बरस से लगातार कर रहा हूँ मेरा बनाया भोजन ही आपकी पसंद हैI मेरे न रहने पर आपके लिए भोजन कौन पकाएगा। राजा ने कुछ सोचा और ख़ानसामा को दी मौत की सज़ा को 10 दिन के लिए रोक दिया। इधर इन्ही दस दिनों में नया ख़ानसामा ढूंढने के लिए आदेश जारी कर दिया गया।
उधर इन दस दिनों में ख़ानसामा ने उन्हीं जंगली शिकारी कुत्तों को बहुत प्यार दिया परम स्वादिष्ट भोजन दिया। उनके ही पास रहने लगा। दस दिनों के बाद जब राजा के आदेश को पूरा करने के लिए ख़ानसामा को जंगली कुत्तों के बाड़े में फेंक गया तब कुत्ते प्यार से ख़ानसामा को चाटने लगे, दुम हिलाने लगे। राजा को ख़बर मिली। ख़ानसामा को बड़े से निकलवाकर अपने पास बुलाया और पूँछा यह सब कैसे हुआ। ख़ानसामा ने जवाब दिया मैंने दस दिन कुत्तों को प्रेम से भोजन कराया उन्होंने प्रेमवश मुझे जीवनदान दिया उधर 40 साल आपके लिए भोजन बनाया आपने भोजन में नमक कम होने की सज़ा में जंगली कुत्तों के बाड़े में डलवा दिया। आपसे तो कुत्ते अच्छे।
राजा को बात लग गई राजा ने भूल सुधारा, मुझसे कुत्तों को समझने में ग़लती हो गई हैI इस ख़ानसामा को मगरमच्छ के बाड़े में डालो, बिना किसी देरी के, ख़ानसामा आर्तनाद करता रहा।
#ज़ुबानकोलगाम
रविवार, 26 जनवरी 2020
लोक लघुकथा ख़ानसामा
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