मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

चार्ली चैप्लिन

क्रिसमस की रात और चार्ली चैप्लिन की बात
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चार्ली ने अपनी नृत्यांगना बेटी को एक मशहूर खत लिखा। कहा मैं सत्ता के खिलाफ विदूषक रहा, इसलिए तुम भी गरीबी जानो, मुफलिसी का कारण ढूंढो, इंसान बनो, इंसानों को समझो, जीवन में इंसानियत के लिए कुछ कर जाओ, खिलौने बनना मुझे पसंद नहीं बेटी। बूढ़े पिता ने प्रिय बेटी को और भी बहुत कुछ ऐसा लिखा।

मेरे प्यारी बेटी,
रात का समय है। क्रिसमस की रात। मेरे इस छोटे से घर की सभी निहत्थी लड़ाइयां सो चुकी हैं। तुम्हारे भाई-बहन भी नीद की गोद में हैं। तुम्हारी मां भी सो चुकी है। मैं अधजगा हूं, कमरे में धीमी सी रौशनी है। तुम मुझसे कितनी दूर हो पर यकीन मानो तुम्हारा चेहरा यदि किसी दिन मेरी आंखों के सामने न रहे, उस दिन मैं चाहूंगा कि मैं अंधा हो जाऊं। तुम्हारी फोटो वहां उस मेज पर है और यहां मेरे दिल में भी, पर तुम कहां हो? वहां सपने जैसे भव्य शहर पेरिस में! चैम्प्स एलिसस के शानदार मंच पर नृत्य कर रही हो। इस रात के सन्नाटे में मैं तुम्हारे कदमों की आहट सुन सकता हूं। शरद ऋतु के आकाश में टिमटिमाते तारों की चमक मैं तुम्हारी आंखों में देख सकता हूं। ऐसा लावण्य और इतना सुन्दर नृत्य। सितारा बनो और चमकती रहो। परन्तु यदि दर्शकों का उत्साह और उनकी प्रशंसा तुम्हें मदहोश करती है या उनसे उपहार में मिले फूलों की सुगंध तुम्हारे सिर चढ़ती है तो चुपके से एक कोने में बैठकर मेरा खत पढ़ते हुए अपने दिल की आवाज सुनना।
...मैं तुम्हारा पिता, जिरलडाइन! मैं चार्ली, चार्ली चेपलिन! क्या तुम जानती हो जब तुम नन्ही बच्ची थी तो रात-रातभर मैं तुम्हारे सिरहाने बैठकर तुम्हें स्लीपिंग ब्यूटी की कहानी सुनाया करता था। मैं तुम्हारे सपनों का साक्षी हूं। मैंने तुम्हारा भविष्य देखा है, मंच पर नाचती एक लड़की मानो आसमान में उड़ती परी। लोगों की करतल ध्वनि के बीच उनकी प्रशंसा के ये शब्द सुने हैं, इस लड़की को देखो! वह एक बूढ़े विदूषक की बेटी है, याद है उसका नाम चार्ली था।
...हां! मैं चार्ली हूं! बूढ़ा विदूषक! अब तुम्हारी बारी है! मैं फटी पेंट में नाचा करता था और मेरी राजकुमारी! तुम रेशम की खूबसूरत ड्रेस में नाचती हो। ये नृत्य और ये शाबाशी तुम्हें सातवें आसमान पर ले जाने जाने के लिए सक्षम है। उड़ो और उड़ो, पर ध्यान रखना कि तुम्हारे पांव सदा धरती पर टिके रहें। तुम्हें लोगों की जिन्दगी को करीब से देखना चाहिए। गलियों-बाजारों में नाच दिखाते नर्तकों को देखो जो कड़कड़ाती सर्दी और भूख से तड़प रहे हैं। मैं भी उन जैसा था, जिरल्डाइन! उन जादुई रातों में जब मैं तुम्हें लोरी गा-गाकर सुलाया करता था और तुम नीद में डूब जाती थी, उस वक्त मैं जागता रहता था। मैं तुम्हारे चेहरे को निहारता, तुम्हारे हृदय की धड़कनों को सुनता और सोचता, चार्ली! क्या यह बच्ची तुम्हें कभी जान सकेगी? तुम मुझे नहीं जानती, जिरल्डाइन! मैंने तुम्हें अनगिनत कहानियां सुनाई हैं पर, उसकी कहानी कभी नहीं सुनाई। वह कहानी भी रोचक है। यह उस भूखे विदूषक की कहानी है, जो लन्दन की गंदी बस्तियों में नाच-गाकर अपनी रोजी कमाता था। यह मेरी कहानी है। मैं जानता हूं पेट की भूख किसे कहते हैं! मैं जानता हूं कि सिर पर छत न होने का क्या दंश होता है। मैंने देखा है, मदद के लिए उछाले गये सिक्कों से उसके आत्म सम्मान को छलनी होते हुए पर फिर भी मैं जिंदा हूं, इसीलिए फिलहाल इस बात को यही छोड़ते हैं।
...तुम्हारे बारे में ही बात करना उचित होगा जिरल्डाइन! तुम्हारे नाम के बाद मेरा नाम आता है चेपलिन! इस नाम के साथ मैने चालीस वर्षों से भी अधिक समय तक लोगों का मनोरंजन किया पर हंसने से अधिक मैं रोया हूं। जिस दुनिया में तुम रहती हो वहा नाच-गाने के अतिरिक्त कुछ नहीं है। आधी रात के बाद जब तुम थियेटर से बाहर आओगी तो तुम अपने समृद्ध और सम्पन्न चाहने वालों को तो भूल सकती हो, पर जिस टैक्सी में बैठकर तुम अपने घर तक आओ, उस टैक्सी ड्राइवर से यह पूछना मत भूलना कि उसकी पत्नी कैसी है? यदि वह उम्मीद से है तो क्या अजन्मे बच्चे के नन्हे कपड़ों के लिए उसके पास पैसे हैं? उसकी जेब में कुछ पैसे डालना न भूलना। मैंने तुम्हारे खर्च के लिए पैसे बैंक में जमा करवा दिए हैं, सोच समझकर खर्च करना।
...कभी कभार बसों में जाना, सब-वे से गुजरना, कभी पैदल चलकर शहर में घूमना। लोगों को ध्यान से देखना, विधवाओं और अनाथों को दया-दृष्टि से देखना। कम से कम दिन में एक बार खुद से यह अवश्य कहना कि, मैं भी उन जैसी हूं। हां! तुम उनमें से ही एक हो बेटी!
...कला किसी कलाकार को पंख देने से पहले उसके पांवों को लहुलुहान जरूर करती है। यदि किसी दिन तुम्हें लगने लगे कि तुम अपने दर्शकों से बड़ी हो तो उसी दिन मंच छोड़कर भाग जाना, टैक्सी पकडऩा और पेरिस के किसी भी कोने में चली जाना। मैं जानता हूं कि वहां तुम्हें अपने जैसी कितनी नृत्यागनाएं मिलेंगी। तुमसे भी अधिक सुन्दर और प्रतिभावान फर्क सिर्फ इतना है कि उनके पास थियेटर की चकाचौंध और चमकीली रोशनी नहीं। उनकी सर्चलाईट चन्द्रमा है! अगर तुम्हें लगे कि इनमें से कोई तुमसे अच्छा नृत्य करती है तो तुम नृत्य छोड़ देना। हमेशा कोई न कोई बेहतर होता है, इसे स्वीकार करना। आगे बढ़ते रहना और निरंतर सीखते रहना ही तो कला है।
...मैं मर जाउंगा, तुम जीवित रहोगी। मैं चाहता हूं तुम्हें कभी गरीबी का एहसास न हो। इस खत के साथ मैं तुम्हें चेकबुक भी भेज रहा हूं ताकि तुम अपनी मर्जी से खर्च कर सको। पर दो सिक्के खर्च करने के बाद सोचना कि तुम्हारे हाथ में पकड़ा तीसरा सिक्का तुम्हारा नहीं है, यह उस अज्ञात व्यक्ति का है जिसे इसकी बेहद जरूरत है। ऐसे इंसान को तुम आसानी से ढूंढ सकती हो, बस पहचानने के लिए एक नजर की जरूरत है। मैं पैसे की इसलिए बात कर रहा हूं क्योंकि मैं इस राक्षस की ताकत को जानता हूं।
...हो सकता है किसी रोज कोई राजकुमार तुम्हारा दीवाना हो जाए। अपने खूबसूरत दिल का सौदा सिर्फ बाहरी चमक-दमक पर न कर बैठना। याद रखना कि सबसे बड़ा हीरा तो सूरज है जो सबके लिए चमकता है। हां! जब ऐसा समय आये कि तुम किसी से प्यार करने लगो तो उसे अपने पूरे दिल से प्यार करना। मैंने तुम्हारी मां को इस विषय में तुम्हें लिखने को कहा था। वह प्यार के सम्बन्ध में मुझसे अधिक जानती है।
...मैं जानता हूं कि तुम्हारा काम कठिन है। तुम्हारा बदन रेशमी कपड़ों से ढका है पर कला खुलने के बाद ही सामने आती है। मैं बूढ़ा हो गया हूं। हो सकता है मेरे शब्द तुम्हें हास्यास्पद जान पड़ें पर मेरे विचार में तुम्हारे अनावृत शरीर का अधिकारी वही हो सकता है जो तुम्हारी अनावृत आत्मा की सच्चाई का सम्मान करने का सामथ्र्य रखता हो।
...मैं ये भी जानता हूं कि एक पिता और उसकी सन्तान के बीच सदैव अंतहीन तनाव बना रहता है पर विश्वास करना मुझे अत्यधिक आज्ञाकारी बच्चे पसंद नहीं। मैं सचमुच चाहता हूं कि इस क्रिसमस की रात कोई करिश्मा हो ताकि जो मैं कहना चाहता हूं वह सब तुम अच्छी तरह समझ जाओ।
...चार्ली अब बूढ़ा हो चुका है, जिरल्डाइन! देर सबेर मातम के काले कपड़ों में तुम्हें मेरी कब्र पर आना ही पड़ेगा। मैं तुम्हें विचलित नहीं करना चाहता पर समय-समय पर खुद को आईने में देखना उसमें तुम्हें मेरा ही अक्स नजर आयेगा। तुम्हारी धमनियों में मेरा रक्त प्रवाहित है। जब मेरी धमनियों में बहने वाला रक्त जम जाएगा तब तुम्हारी धमनियों में बहने वाला रक्त तुम्हें मेरी याद कराएगा। याद रखना, तुम्हारा पिता कोई फरिश्ता नहीं, कोई जीनियस नहीं, वह तो जिन्दगी भर एक इंसान बनने की ही कोशिश करता रहा। तुम भी यही कोशिश करना।

ढेर सारे प्यार के साथ
चार्ली क्रिसमस 1965

रंगमंच के फायदे, रंगमंचीय पर्यटन

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के क्रिसमस संस्करण में प्रकाशित किया गया है जो इन्सान प्रत्येक महीने में रंगमचीय प्रस्तुतियों को देखता है वह सामान्य से ज्यादा स्वस्थ रहता है| समान्य से ज्यादा सुकून में रहता है| रोगों और व्याधियों का खतरा कम होता, मन प्रफुल्लित और सकारत्मक उर्जा से भरा रहता है| रंगमंचीय प्रस्तुतियों में नाटक, नृत्य, गायन, वादन, जादू, सर्कस, पारिवारिक फिल्में आदि विधाओं को शामिल किया गया था| 

शोध में रंगमंचीय प्रस्तुतियों के साथ ही कला संग्रहालयों को भी शामिल किया गया है| इन संग्रहालयों में मनुष्य तस्वीरों को देखता है रंगों को देखता है| रेखाओं को देखता है| संरचना को देखता है भावों पर विचार करता है इससे दिमाग़ संतुलित होता है उसमें सोचने, समझने और समझाने की प्रवृत्ति भी उभरती है|

यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि आप यदि लम्बी ज़िन्दगी जीना चाहते है| तो इसके लिए आपको महीने में एक बार सभागारों, संग्रहालयों, आर्ट गैलरियों, सिनेमाघरों में घूमने जाना चाहिए| शोधकर्ताओं ने 50 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 7000 वयस्क व्यक्तियों के सेहद पर लगातार 12 वर्ष तक यह शोध किया है| और पाया कि जो लोग रंगमंच की किसी भी विधा को लगातार देखते रहते है और उन्हें पसंद करते रहते है उन्हें देखने जाते रहते है| उनकी जल्दी मृत्यु के जोखिम में 31 प्रतिशत की कटौती हो जाती है| इस शोध में लन्दन के शोधकर्ताओं ने दावा किया गया है| कि हर महीने एक बार रंगमंच देखने से किसी भी व्यक्ति की जल्दी मौत होने का खतरा कम हो जाता है| शोधकर्ताओं ने पाया कि कला से जुड़े लोगों की मृत्यु की संभावना में 14 प्रतिशत की कमी थी| शोध में ऐसे साक्ष्य मिले है कि जो लोग कला से जुड़े रहे, चाहे वे तस्वीरों की तारीफ ही कर रहे है| परन्तु उनके स्वस्थ को लाभ पहुंचा है| शोधकर्ताओं ने कहा कि महीने में सिर्फ एक बार भी थियेटर जाने से व्यक्ति के मानसिक स्वस्थ में सुधार हो सकता है| और रंगमंच व्यक्ति के शारीरिक गतिविधियों को भी प्रोत्साहित कर सकती है| हालांकि मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक गतिविधियों को विशेष ध्यान में रखते हुए आर्ट गैलरी को लम्बी उम्र के साथ जोड़ कर शोध किया गया| शोध के लेखक डॉक्टर डेजी फैन्कोर्ट ने कहा की इस बात के लिए अभी और परीक्षण करने की जरूरत है कि रंगमंच में जाने से जल्दी होने वाली मौतों को कैसे रोका जा सकता है| डॉक्टर डेजी फैन्कोर्ट ने प्रतिभागियों को औसतन 12 वर्ष तक देखा और इस नतीजे तक पहुंची|

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

मान मनौव्वल

जीवन जीने के लिए कला के साथ 20 वर्ष  पहले देख देखौवल हुआ, दोस्ती हुई। आरम्भ में तो लगा तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध ही मैं लगातार बस तुम्हारे पास रहने की कोशिश कर रहा हूँ, तुम्हारे निकट के लोग मुझे तुम्हारे पास फटकने ही नहीं देते थे और ऐसा भी नहीं था कि वो मुझे जबरदस्ती नहीं अाने दे रहे थे। बल्कि लगातार मेरा परीक्षण कर रहे थे कि मैं तुम्हारी निकटता या कहूँ कि दोस्ती को पाने के काबिल हूँ, मेरी नीयत साफ है या नहीं। तुम्हारी निकटता से ही मैंने खुद से दोस्ती की। खुद को जाना। तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध ही मैंने तुमसे एकतरफा इश्क किया है। तुम्हारी वजह से ही मुझे मेरी आवाज़ भी अच्छी लगने लगी और तुम्हारी आवाज़ का नशा पूरे ज़माने में चढ़ गया है। अक्सर लगता रहा कि मैंने शब्दों से दोस्ती कर ली है और सुरों से इश्क। और अब तो सुरोंऔर शब्दों के साथ रहते मैं कभी अकेला नहीं होता। इन्ही के साथ चाय पीता लेता हूँ और ठण्ड में भी इन्ही के साथ रज़ाई में चुहलबाज़ी होती है। दिन ब दिन मेरी सांसो के आरोह अवरोह में सुरो और शब्दों के ही धड़कन बन गये है। तुम्हारी याद आते ही शब्द सुरो में बदल गुनगुनाने लगते है और धड़कने लय में बदल जाते है। तुम ही मेरी सबसे सीधी साधी साथी हो तुम्हारे साथ रहता हूँ तो कब सुबह से दोपहर होती है कब शाम इल्म ही नहीं होता। जब ध्यान भंग होता है तो बीते समय को उधेड़ता हूँ कि शायद सुबह के धागे कही शाम में फंसे होंगे तो निकल आएंगे। पर कितने ही पापड़ बेले पर गुज़री सुरीली शाम नहीं मिलती और वही उधेड़बुन शुरू रहती है। अब ये मेरा इश्क है या नाटक जो मुझे तुमसे बंधे रखता है। लगता है जैसे मेरी रगों में अब खून नहीं तेरा इश्क बहने लगा है। बस ये इश्क बहना जिस दिन बंद होगा उसी दिन.………। सारा सुर, शब्द, लय, ताल, धुन सब बेसुरा बेताल हो जायेगा। उम्मीद करता हूँ तेरा इश्क मेरी रगों में उम्रभर बहता रहेगा और दुनिया हमारे इश्क पर फक्र करेगी। और उम्मीद करता हूँ कि पूरी दुनिया मेरी तरह तेरे इश्क के कलाम लिखेगा, सुरों को सजाएगा, और शब्दों की रचना करेगा।
अब आगे क्या लिखूँ तुम खुद ही ज्ञान के सागर हो थोड़े को बहुत समझों तुम्हारे जवाब के इंतज़ार में

मनोज कुमार मिश्रा