शनिवार, 14 मार्च 2020

कस्बों का साधन विहीन रंगमंच

छोटे शहरों, तहसीलों में आधुनिक रंगमंच साधनहीन होने के साथ साथ बहुत खर्चीला और श्रमसाध्य है इसलिए कस्बों में काम करने वाले कलाकार/अभिनेता कुछ समय खड़े होकर देखते है कुछ कदम साथ चलकर रास्ता बदल लेते हैं य्या जगह छोड़ देते है। नाटक करने के लिए हमारे और उनके पास शादियों और तेरहवीं सम्पन्न कराने वाले भवन, मैदान या खेत ही होते हैं जिनमें बहुत मशक्कत करके कलाकारों को ही स्वयं पर्दे माइक और लाइट टांगने होते हैं । इन गूंजते भवनों में कलाकारों की महीनों की मेहनत नष्ट कर देने की अदम्य और अद्भुत ताकत हैं।

 उधर नाटक के 3 घंटे यह कलाकार की जिंदगी का सबसे अच्छा अवसर होता है जब हम मंच पर रहते है। हम अच्छा करें या खराब पर ये 3 घंटे हमें जिंदगी भर याद रहता है। नाटक कैसे करना है ये आज अब निर्देशक नहीं बताएगा। निर्देशक कहेगा *जाओ ये 3 घंटे जी भरकर नाटक कर लो* क्योंकि इन 3 घंटों के बाद के जीवन में चाहे अच्छा करों या बुरा, अद्भुत करों या भयानक पर यह गया समय/परिस्थिति दुबारा कभी नहीं आएगा। समय के साथ साथ परिस्थितियों में बदलाव होगा। क्योंकि यदि इन 3 घंटों में आपने अपना सबसे खूबसूरत अभिनय किया तो जहाँन भर की ताकत भी आपको नज़रंदाज़ नहीं कर सकती। इसी विश्वास के साथ मंच पर कलाकार उतरता है। संभावनाशील कलाकार होता है तो जल्दी ही वहां से निकालकर महानगरों में पलायन कर जाते है। महानगरों की हवा लगते ही स्क्रिप्ट पर बात करने से पहले मानदेय/पेमेन्ट की बात करते है।

ऐसे कम ही उदाहरण देखने में आते  हैं कि जन सहयोग से किसी नाट्य समूह ने सक्रिय रंगकर्म करते हुए लम्बा रास्ता तय किया हो। मण्डप इन्हीं विपरीत परिस्थितियों में काम करते हुए रंगकर्म के क्षेत्र में 12 साल से ज़्यादा का सफर तय किया है।

खूबसूरत नाटक के अद्भुत क्षण

https://youtu.be/WdeWAyXsUuo