शनिवार, 31 जनवरी 2015

राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव की खबर


मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र, रीवा (म.प्र.) का प्रतिष्ठा आयोजन 20 से 24 दिसंबर को हुआ

वरिष्ठ रंगकर्मी स्व.अलखनंदन को समर्पित नाट्योत्सव

“राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव”

रीवा में पांच दिवसीय राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव का शुभारम्भ संस्कृति विभाग, भारत सरकार के सहयोग से 20 दिसंबर को स्वयंबर सभागार में मध्य प्रदेश के ऊर्जा, खनिज एवं जनसंपर्क मंत्री श्री राजेंद्र शुक्ल जी ने दीप प्रज्जवन के साथ नगाड़े को ध्वनित कर किया और अपने उद्बोधन में शिखर सम्मान से सम्मानित स्व. अलखनंदन जी रंगमंच को रचनाधर्मी एवं प्रयोगधर्मी बताया और रीवा से आपके सानिध्य को भी रेखांकित किया साथ ही कहा कि रीवा में रंगकर्म करना बंजर जमीन पर खेती करने जैसा है परन्तु मण्डप आर्ट्स ने यह जो दुरूह कार्य करने का बीड़ा उठाया है इसके लिए मध्यप्रदेश शासन की तरफ से रीवा में नाट्य कर्मियों के लिए हर संभव मदद दी जाएगी| इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार श्री चन्द्रिका प्रसाद ‘चन्द्र’, जयराम शुक्ल, दिनेश कुशवाहा, देवेन्द्र सिंह, अशोक सिंह, डॉ. विद्याप्रकाश तिवारी, योगेश त्रिपाठी, सेवाराम त्रिपाठी, कैलाशचंद सक्सेना सहित जिले के साहित्यकार, रंगकर्मी, बुद्धिजीवीयों और  दर्शक उपस्थित रहे | पांच दिन के नाट्योत्सव में प्रतिदिन सभागार भरा रहा जब की रीवा जिला ठंड से कांप रहा था नाट्योत्सव में पांच दिनों में पांच अभिनय शैलियाँ देखने को मिली ,जिसमे क्रमशः लोकनाट्य, कहानी मंचन ,हास्य, ट्रेजिडी और समसामयिक प्रोपोगेन्डा नाटक थे इसमें 20 दिसंबर शाम 6:30 को सघन सोसाइटी भोपाल की नाट्य प्रस्तुति छाहुर का मंचन हुआ| विनोद मिश्रा, सुनील सिंह के द्वारा रचित इस लोक नाट्य को निर्देशित किया आनंद मिश्रा ने | आनंद मिश्रा को उ.म.क्षे.सा.के. नागपुर की योजना से भोपाल में छाहुर का प्रशिक्षण दे रहे है| छाहुर बघेलखंड का लोकनाट्य है और प्रस्तुति में प्रयुक्त बिम्बों, बघेलीगीत-सगीत, लोकोक्तियों, उख्खानों और बोली ठिठोली ने तो दर्शको को भावविभोर कर दिया| 21 को सुबह 11 बजे कलावीथिका का शुभारम्भ विजय अग्रवाल, विनय अम्बर, वसंत काशीकर, हिमान्शू राय ने की| कला प्रदर्शनी में विनय अम्बर, के, सुधीर, डॉ.प्रणय, अर्चना कुमार के चित्र और शिल्प प्रदर्शित किये गए यह प्रदर्शनी 24 दिसंबर को शाम 6:00 बजे तक चली | इसी शाम प्रदेश की प्रतिष्ठित नाट्य संस्था ‘विवेचना’ जबलपुर की प्रस्तुति उदयप्रकाश की कहानी ‘मौसाजी जय हिन्द’ को वसंत काशीकर ने निर्देशित किया था| बुन्देली बोली और किस्सागोई के तरीके ने नाटक को प्रभावी बनाया| मौसाजी जो की अपने परिवार को आगे बढ़ाते हुए देखना कहते है मौसा जी का अपना झूठा संसार है| सपनों में जीते मौसाजी किसी के भी सामने अपने को हीन नहीं दिखने देते है| 22 की शाम रंगदूत सीधी की प्रस्तुति नौटंकी शैली में “थैंक्यू बाबा लोचनदास उर्फ़ नर-नारी का मंचन हुआ| गीत संगीत की अधिकता में कथ्य कहीं थोडा अछूता रह गया परन्तु प्रस्तुति पूर्णरूपेण मनोरंजक थी| 23 दिस. की शाम मण्डप आर्ट की प्रस्तुति “धोखा” का मंचन हुआ| अल्बेयर कामू के नाटक (द मिसअंडरस्टैंडिंग) के बघेली रूपांतर को निर्देशित किया भारतेंदु नाट्य अकादेमी से प्रशिक्षित मनोज मिश्रा ने| नाटक में बूढ़े नौकर के चरित्र में सुभाष गुप्ता ने प्रभावशाली अभिनय किया| प्रकाश परिकल्पना में मनोविश्लेषनात्मक प्रभाव दिखा साथ ही नाट्योत्सव की यह एक मात्र यथार्थवादी अभिनय शैली पर केन्द्रित नाटक था और नाटक दर्शकों पर गहरा प्रभाव डालने में सफल रहा| राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव की अंतिम प्रस्तुति 24 दिसंबर को ‘समानांतर’ इलाहबाद के नाटक टोपी शुक्ला से हुई| राही मासूम रज़ा लिखित टोपी शुक्ला को अनिल रंजन भौमिक ने मनोशारीरिक अभिनय शैली में पिरोया| राकेश यादव ने टोपी के चरित्र को जीवंत कर दिया| नाटक हिदू मुस्लिम संबंधों की गहरी पड़ताल में दिखा| नाटक का कथ्य, संयोजन, ध्वनी प्रभाव, संगीत, और अभिनय सबसे मजबूती के साथ था| और निर्देशक ने नाटक में न तो राजनीतिक और न ही शिक्षात्मक ही प्रभाव पड़ने दिया बल्कि उन्होंने समाज के रुख को दिखाया| नाट्योत्सव की अंतिम प्रस्तुति को देखने बाद राजेंद्र शुक्ल जी मंत्री, ऊर्जा, खानिज एवं जनसंपर्क मंत्री समारोह को पूर्णरूप से सफल बताया और दर्शको को बधाई दी| और विश्वास दिलाया कि अगले राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव को हम विवाहघर में नहीं सभागर में देखेगें| और अगर आप विवाहघर को सभागार में परिवर्तित कर सकते है| तो रीवा में राजकपूर आर्ट एण्ड कल्चरल सेंटर बनाने की बात कही जिसका कार्य शुरू हो चूका है| आई.जी. रीवा ज़ोन श्री पवन श्रीवास्तव ने कहा की हमने विश्वास ही नहीं था कि रीवा में राष्ट्रीय नाट्य समारोह की कल्पना भी की जा सकती है| पवन श्रीवास्तव जी ने अलखनंदन जी पर अपना संस्मरण सुनाया और बताया कि अलखनंदन जी को प्राप्त शिखर सम्मान की कमेटी में थे| अलखनंदन का रंगमंच जीवटता को प्रेरित करता है| मण्डप आर्ट्स के इस आयोजन से रीवा में हो रंगमंच को देश में पहचान मिलेगी| मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र के निदेशक मनोज मिश्रा ने अपने उद्बोधन में रंग अलख नाट्योत्सव को अलखनंदन जी के रंगमंच से प्रेरित बताया साथ ही अलख जी के रंगमंच पर अवदान को रेखांकित किया और रीवा में सभागार और पूर्वाभ्यास के लिए स्थान मुहैया करने के लिए प्रशासन से मांग रखी| और पूर्वाभ्यास के लिए कभी तानसेन काम्प्लेक्स की छत, कभी क्लीनिक, कभी पार्कों में यहाँ के कलाकार निरंतर पूर्वाभ्यास कर रहें है |और पूर्वाभ्यास केवल नाटक ही नहीं अपितु संगीत, नृत्य, पेंटिंग, स्कल्पचर, आदि के लिए भी आवश्यक है| इन सभी क्षेत्र में कलाकार प्रस्तुतियों के अवसरों की स्थितियों के अलावा समय में भी निरंतर रियाज़ करते है| और यही कला साधना हमें पूर्णता की ओर ले जाता है और अंतिम लक्ष्य का रास्ता कभी खत्म नहीं होता है मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केन्द्र के प्रतिष्ठा आयोजन राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव में उपस्थित दर्शकों के प्रति आभार वयक्त किया| अन्य वक्ता के रूप में अलख जी के मित्र एवं रंगकर्मी डॉ.विद्या प्रकाश तिवारी, चित्रकार विनय अम्बर, नाट्य लेखक योगेश त्रिपाठी, हनुमंत शर्मा, अशोक सिंह एवं के. सुधीर आदि प्रमुख थे|

अर्थदोष के बारे में धोखा


कामू के नाटक the misunderstanding में मुख्य पात्र माँ ,बेटी ,और बेटा और गूगां नौकर ,सच्चाई से सामना करवाने के लिए बहू है |जोकि मार्था को सच्चाई से साक्षात्कार करवाती है |
हमारी बघेली लोककथा में पुत्र ,पिता ,बड़ा भाई ,बच्चा और एक नौकर है | जहाँ कामू के नाटक में घटना स्थल होटल है वहीँ इस कथा में घटना धर्मशाला की है |इस कारण नाटक का रूपांतरण करते समय हमने बघेलखंडी सभ्यता को ही मूल मानकर माँ – बेटी के स्थान पर पिता पुत्र किया है |जो की बघेली कटा है और कथा के जड़ में लोभ छुपा है |पैसे की हाय-हाय ,रोजगार की कमी ,लालच ,किसानों का पलायन ,शहरीकरण ,भूख के दर से मजदूर बनने की कथा है |भौतिक सुख-सुविधाओं की तलाश है |मनुष्य के दुखों –सुखों सपनों इच्छाओं प्रतिक्रियाओं ,असमर्थता , निष्फलता ,अवरोध एवं विरोध से समाज में प्रतिरोध की भावना लालच को जन्म देती है |और इस महत्वाकांक्षा का परिणाम हत्या या आत्महत्या होती है मार्था (परिवर्तित चरित्र पुत्र) समाज में रईस ,सम्मानित सूची में शामिल होना चाहता है |परन्तु हम उसे एसा नहीं दिखाना चाहते की समाज में उसे घृणा की दृष्टि से देखा जाय वरन हम मुख्य पात्र के रूप परिस्थिति को पेश करना चाहते है |जिसके कारण घटना दुखांत रूप लेती है और प्रभाव बढ़ जाता है |the misunderstanding जीवन की निर्रथकता को सार्थक समझानेवालों से तर्क करता है और मैं यहीं नाटक के मोह में फास जाता हूँ और यही मोह कथा (नाटक) की अभिकल्पना ,परिकल्पना की जमीन बनता है |नाटक का बघेली रूपांतरण के साथ बघेलखंडी सस्कृति के साथ संगीत ,गीत ,नृत्य ,वेशभूषा ,स्थान भी आ गया ,बघेली मिटटी का रंग आ गया |गूंगा नौकर आम जनता की तरह घटना को देखता और महसूस करता है |परन्तु उसका अपने मत का कोई महत्व नहीं है |मनुष्य में असंतुष्टि के मुहावरे को चरित्रार्थ करता है |

इस तरह अंतर्राष्ट्रीय नाटक को बघेली बोलिबानी में उतारने का प्रयास है

शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

रीवा में रंगकर्म की अपनी सुदीर्घ परंपरा है| दरअसल रंगकर्म की गतिविधियों का जो रूप हम देख रहे है|उसे साकार रूप देने में पित्र पुरुषों को भुलाया नहीं जा सकता है|अर्थात परंपरा बनाना भी बड़े जतन का काम होता है|जिसे राज कपूर मेमोरियल सभागार बनाने से इस सृजनात्मक कार्य की गति में वृद्धि होगी |नाटकों ने रीवा में रचनात्मक क्षेत्र में ज्यादा स्थान घेरा है |किन्तु आज तक रीवा संभाग में नाट्य मंचन के लिए उपयुक्त सभागार नहीं है| साथ ही पूर्वाभ्यास के लिये भी आज तक सार्थक स्थान नहीं मिल पाया है कभी  तानसेन काम्प्लेक्स की छत ,कभी क्लीनिक, स्कूल,मैदान ,पार्कों में पूर्वाभास निरंतर चल रहा है |और पूर्वाभ्यास केवल नाट्य में ही नहीं अपितु संगीत,नृत्य,पेंटिंग,स्कल्पचर आदि के लिए भी आवश्यक है |इन सभी क्षेत्रों में कलाकार प्रस्तुतियों के अवसरों की स्थितियों के अलावा समय में भी  इरांतर रियाज़ करते है|मगर कभी आन्दोलन की स्थिति में आकर भी एसी सहूलियतों की शिकायत नहीं करते है| परन्तु यदि जिला प्रशासन ऐसा स्थान सुलभ कराये तो निश्चय ही यह रीवा के कलाकारों के साथ ही साथ प्रदेश ही नही देश देशभर के कलाकारों के लिए एक अहम् कदम होगा|

प्रथम राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव रीवा

मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र, रीवा (म.प्र.) का प्रतिष्ठा आयोजन 20 से 24 दिसंबर को हुआ
वरिष्ठ रंगकर्मी स्व.अलखनंदन को समर्पित नाट्योत्सव
“राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव”


रीवा में पांच दिवसीय राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव का शुभारम्भ संस्कृति विभाग, भारत सरकार के सहयोग से 20 दिसंबर को स्वयंबर सभागार में मध्य प्रदेश के ऊर्जा, खनिज एवं जनसंपर्क मंत्री श्री राजेंद्र शुक्ल जी ने दीप प्रज्जवन के साथ नगाड़े को ध्वनित कर किया और अपने उद्बोधन में शिखर सम्मान से सम्मानित स्व. अलखनंदन जी रंगमंच को रचनाधर्मी एवं प्रयोगधर्मी बताया और रीवा से आपके सानिध्य को भी रेखांकित किया साथ ही कहा कि रीवा में रंगकर्म करना बंजर जमीन पर खेती करने जैसा है परन्तु मण्डप आर्ट्स ने यह जो दुरूह कार्य करने का बीड़ा उठाया है इसके लिए मध्यप्रदेश शासन की तरफ से रीवा में नाट्य कर्मियों के लिए हर संभव मदद दी जाएगी| इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार श्री चन्द्रिका प्रसाद ‘चन्द्र’, जयराम शुक्ल, दिनेश कुशवाहा, देवेन्द्र सिंह, अशोक सिंह, डॉ. विद्याप्रकाश तिवारी, योगेश त्रिपाठी, सेवाराम त्रिपाठी, कैलाशचंद सक्सेना सहित जिले के साहित्यकार, रंगकर्मी, बुद्धिजीवीयों और  दर्शक उपस्थित रहे | पांच दिन के नाट्योत्सव में प्रतिदिन सभागार भरा रहा जब की रीवा जिला ठंड से कांप रहा था नाट्योत्सव में पांच दिनों में पांच अभिनय शैलियाँ देखने को मिली ,जिसमे क्रमशः लोकनाट्य, कहानी मंचन ,हास्य, ट्रेजिडी और समसामयिक प्रोपोगेन्डा नाटक थे इसमें 20 दिसंबर शाम 6:30 को सघन सोसाइटी भोपाल की नाट्य प्रस्तुति छाहुर का मंचन हुआ| विनोद मिश्रा, सुनील सिंह के द्वारा रचित इस लोक नाट्य को निर्देशित किया आनंद मिश्रा ने | आनंद मिश्रा को उ.म.क्षे.सा.के. नागपुर की योजना से भोपाल में छाहुर का प्रशिक्षण दे रहे है| छाहुर बघेलखंड का लोकनाट्य है और प्रस्तुति में प्रयुक्त बिम्बों, बघेलीगीत-सगीत, लोकोक्तियों, उख्खानों और बोली ठिठोली ने तो दर्शको को भावविभोर कर दिया| 21 को सुबह 11 बजे कलावीथिका का शुभारम्भ विजय अग्रवाल, विनय अम्बर, वसंत काशीकर, हिमान्शू राय ने की| कला प्रदर्शनी में विनय अम्बर, के, सुधीर, डॉ.प्रणय, अर्चना कुमार के चित्र और शिल्प प्रदर्शित किये गए यह प्रदर्शनी 24 दिसंबर को शाम 6:00 बजे तक चली | इसी शाम प्रदेश की प्रतिष्ठित नाट्य संस्था ‘विवेचना’ जबलपुर की प्रस्तुति उदयप्रकाश की कहानी ‘मौसाजी जय हिन्द’ को वसंत काशीकर ने निर्देशित किया था| बुन्देली बोली और किस्सागोई के तरीके ने नाटक को प्रभावी बनाया| मौसाजी जो की अपने परिवार को आगे बढ़ाते हुए देखना कहते है मौसा जी का अपना झूठा संसार है| सपनों में जीते मौसाजी किसी के भी सामने अपने को हीन नहीं दिखने देते है| 22 की शाम रंगदूत सीधी की प्रस्तुति नौटंकी शैली में “थैंक्यू बाबा लोचनदास उर्फ़ नर-नारी का मंचन हुआ| गीत संगीत की अधिकता में कथ्य कहीं थोडा अछूता रह गया परन्तु प्रस्तुति पूर्णरूपेण मनोरंजक थी| 23 दिस. की शाम मण्डप आर्ट की प्रस्तुति “धोखा” का मंचन हुआ| अल्बेयर कामू के नाटक (द मिसअंडरस्टैंडिंग) के बघेली रूपांतर को निर्देशित किया भारतेंदु नाट्य अकादेमी से प्रशिक्षित मनोज मिश्रा ने| नाटक में बूढ़े नौकर के चरित्र में सुभाष गुप्ता ने प्रभावशाली अभिनय किया| प्रकाश परिकल्पना में मनोविश्लेषनात्मक प्रभाव दिखा साथ ही नाट्योत्सव की यह एक मात्र यथार्थवादी अभिनय शैली पर केन्द्रित नाटक था और नाटक दर्शकों पर गहरा प्रभाव डालने में सफल रहा| राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव की अंतिम प्रस्तुति 24 दिसंबर को ‘समानांतर’ इलाहबाद के नाटक टोपी शुक्ला से हुई| राही मासूम रज़ा लिखित टोपी शुक्ला को अनिल रंजन भौमिक ने मनोशारीरिक अभिनय शैली में पिरोया| राकेश यादव ने टोपी के चरित्र को जीवंत कर दिया| नाटक हिदू मुस्लिम संबंधों की गहरी पड़ताल में दिखा| नाटक का कथ्य, संयोजन, ध्वनी प्रभाव, संगीत, और अभिनय सबसे मजबूती के साथ था| और निर्देशक ने नाटक में न तो राजनीतिक और न ही शिक्षात्मक ही प्रभाव पड़ने दिया बल्कि उन्होंने समाज के रुख को दिखाया| नाट्योत्सव की अंतिम प्रस्तुति को देखने बाद राजेंद्र शुक्ल जी मंत्री, ऊर्जा, खानिज एवं जनसंपर्क मंत्री समारोह को पूर्णरूप से सफल बताया और दर्शको को बधाई दी| और विश्वास दिलाया कि अगले राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव को हम विवाहघर में नहीं सभागर में देखेगें| और अगर आप विवाहघर को सभागार में परिवर्तित कर सकते है| तो रीवा में राजकपूर आर्ट एण्ड कल्चरल सेंटर बनाने की बात कही जिसका कार्य शुरू हो चूका है| आई.जी. रीवा ज़ोन श्री पवन श्रीवास्तव ने कहा की हमने विश्वास ही नहीं था कि रीवा में राष्ट्रीय नाट्य समारोह की कल्पना भी की जा सकती है| पवन श्रीवास्तव जी ने अलखनंदन जी पर अपना संस्मरण सुनाया और बताया कि अलखनंदन जी को प्राप्त शिखर सम्मान की कमेटी में थे| अलखनंदन का रंगमंच जीवटता को प्रेरित करता है| मण्डप आर्ट्स के इस आयोजन से रीवा में हो रंगमंच को देश में पहचान मिलेगी| मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र के निदेशक मनोज मिश्रा ने अपने उद्बोधन में रंग अलख नाट्योत्सव को अलखनंदन जी के रंगमंच से प्रेरित बताया साथ ही अलख जी के रंगमंच पर अवदान को रेखांकित किया और रीवा में सभागार और पूर्वाभ्यास के लिए स्थान मुहैया करने के लिए प्रशासन से मांग रखी| और पूर्वाभ्यास के लिए कभी तानसेन काम्प्लेक्स की छत, कभी क्लीनिक, कभी पार्कों में यहाँ के कलाकार निरंतर पूर्वाभ्यास कर रहें है |और पूर्वाभ्यास केवल नाटक ही नहीं अपितु संगीत, नृत्य, पेंटिंग, स्कल्पचर, आदि के लिए भी आवश्यक है| इन सभी क्षेत्र में कलाकार प्रस्तुतियों के अवसरों की स्थितियों के अलावा समय में भी निरंतर रियाज़ करते है| और यही कला साधना हमें पूर्णता की ओर ले जाता है और अंतिम लक्ष्य का रास्ता कभी खत्म नहीं होता है मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केन्द्र के प्रतिष्ठा आयोजन राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव में उपस्थित दर्शकों के प्रति आभार वयक्त किया| अन्य वक्ता के रूप में अलख जी के मित्र एवं रंगकर्मी डॉ.विद्या प्रकाश तिवारी, चित्रकार विनय अम्बर, नाट्य लेखक योगेश त्रिपाठी, हनुमंत शर्मा, अशोक सिंह एवं के. सुधीर आदि प्रमुख थे|

राम की शक्तिपूजा, ब्रोशर

डिंडोरी (म.प्र.) में मंचित हुआ पहला नाटक ‘राम की शक्तिपूजा’
दिनांक - 26/01/2015 

राम की शक्तिपूजा निराला जी की वैश्विक कविता है| कविता में राम नाम का व्यक्ति है.जो मन में कहीं हार चुका है| परन्तु जब जामवन्त समझाते है कि आप शक्ति की उपासना कीजिये और उन्हें प्रसन्न कीजिये तब राम शक्ति की आराधना करते है और आत्म समर्पण की स्थिति पर पहुंचाते है| जब अभ्यास साधना बनती है, तब साधना आराधना बनती है और अंत में वही आराधना शक्ति प्रदान कराती है| राम की शक्तिपूजा रचनात्मक, तर्कपूर्ण विचार की तरह दिखाया गया है कविता को देखना अलग अनुभव होता सा जान पड़ता है| संवाद कभी लयात्मक कभी सूत्रधारात्मक शैली का उपयोग किया है| नाटक में राम को आम चरित्र की तरह पेश किया गया है नाटक में दलित विमर्श और सामाजिक समीकरण है| साथ ही अपने आप से द्वंद की स्थिति में दिखता है जिसे अभिनेताओं ने बखूबी से उभरा है | सूत्रधार/देवी- राज तिवारी ‘भोला’, राम – अखण्ड प्रताप सिंह, रावण – सुभाष गुप्ता, विभीषण – शैलेन्द्रमणि कुशवाहा, हनुमान – राजेश शुक्ला ‘राजन’, जामवंत – कमलेश वर्मा, लक्ष्मण – स्वतंत्र कुमार ने चरित्रों को निभाया| निर्देशन मनोज कुमार मिश्रा का था