शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

prichay: प्रकृति की मृत्यु हो गई है ,अब तो सिर्फ आग है चारो...

prichay: प्रकृति की मृत्यु हो गई है ,अब तो सिर्फ आग है चारो...: प्रकृति की मृत्यु हो गई है ,अब तो सिर्फ आग है चारों तरफ कालिख है ,पैसा है और कालिख खरीदी जा रही है जिंदगी है इससे निकलता हुआ धुँआ जो उड़ जाय...

प्रकृति की मृत्यु हो गयी

प्रकृति की मृत्यु हो गई है ,अब तो सिर्फ आग है चारों तरफ कालिख है ,पैसा है और कालिख खरीदी जा रही है जिंदगी है इससे निकलता हुआ धुँआ जो उड़ जायेगा कुछ हैजो हमारी ओर आ रहा है शायद बदल |जल बरसेगा |नई प्रकृति का जन्म होगा |देखा रहे हो दीवारे सिकुडकर छोटी हो गई है ,छत ज़मीन से मिलने को लड़ रही है आकाश से | वो देख रहा है घंटी बज रही है | आँख खुली है पर अपने पास नहीं देख पा रहा हूँ मै |अपने आप को नहीं देख पा रहा हूँ ?सलाखें मोती और भारी है |शरीर सीक सा दिखता है ऐठ गया है शरीर |रौशनी सिर्फ एक छेड़ से आ रही है जलस्तर बढाता जा रहा है |खम्भों के ऊपर मूर्ति लगी है |धीरे-धीरे पिघल रही है | अब मिट्टी मे मिल जायेगी |हवा की ध्वनि फटे हुए कण के पर्दीन को भी सुनाई दे रही है |दूर कहीं जानवरों के गले की घंटी बज रही है |यह सब इतना आसान नहीं जिंदगी ,परछाई बन गई है |मेरी कैप रखी है ,छड़ी रखी है|और सब नीचे गिर रहा है |