रविवार, 19 दिसंबर 2021

'जान' साथ होने पर यकीन करता हूँ

'जान' तुम्हारे होने का मैं यक़ीन करता हूँ और अगर दुनियावी लोगों को अपने ही जितना यकीन  दिला सकता। तो फिर हमारा इश्क समय के दायरे से बाहर हो जाता हमारी मुहब्बत के अमर होने का यही राज़ होता कि हमारी कहानियों को सुनाने और सुनने वाले को उस दुनिया की सैर करवाती जो इस काल खंड के परे है
कभी कभी लगता है समय के अनुसार मैं बहुत वषों बाद पैदा हुआ और इस समय में मेरी कोई खास उपयोगिता नहीं है और कभी लगता है कि थोड़ी देर और हो जाती तो........ संवेदनशीलता ने तो कहीं ज़्यादा जकड़ने की कोशिश तो शुरू नहीं कर दी है। यहाँ वजह सिर्फ इतनी ही है कि सौपें गए कार्यों को या स्वस्फूर्त किये जा रहे कार्यों को नए तरीके से देखने समझने और महसूस करने लगा हूँ, घिसेपिटे तौर-तरीकों से अब मेरा इत्तेफाक नहीं है। दायित्वों को अपने और तुम्हारे सम्बन्ध की मधुरता की तराजू में तौलकर उसका भाव तय करता हूँ।
बचपन सदैव सुख के दिन होने चाहिए या होते ही है, जो अब हमारे जीवन में कभी नहीं लौटेंगे। क्या मैं कभी बचपन की कोई भी स्मृति भुला सकता हूँ? उन दिनों के बारे में सोचकर हृदय प्रफुल्लित हो जाता है मुख में बार-बार स्मित मुस्कान छा जाती है अंतस में नवीन नूतन उत्कृष्ठता के अनुभव को महसूस करने लगता हूँ।
याद आता है कि मेरे लिये बातें सुनने के शौक को दबाना किस कदर मुश्किल था। और तुम हमेशा बातों को कहती रहती थी। इधर मैं तुम्हारी प्यारी, मधुर स्वर मंजरियों को सुनता रहता। नींद में डूब जाने के बाद भी मुझे तुम्हारी आकृति के पहलू में शांत विश्राम कर रहा हूँ।
अत्यधिक भीड़ में भी स्वयं अपने आपको समेट कर बैठ रहता। लोग सोचते थे/है। सोया हुआ है, सुस्त है, खोया हुआ है। जबकि मैं तुम्हारे शब्दों की खुशबू में तुम्हारे साथ उड़ता रहता था........आज भी तैरता रहता हूँ गोते लगाता रहता हूँ। यह सच है तुम अधिकतर मेरी कल्पना में दिव्य के रूप में ही दिखती हो इधर आकर तुम्हारा चेहरा अब तो और कम साफ दिखता है जितना करीब पहुंचना चाहता हूँ उतनी धुँधली और मोहक तुम्हारी तस्वीर हो रही है जिज्ञासाएँ तेज़ी से बढ़ रही है। नीद से आँखें बोझिल और पलकें नींद से भारी हो जाती है। सब लोग सो जाते है तब कभी आधी नींद में मुझे लगता है जैसे कोई मुझे अपने कोमल मुलायम हांथों से छू रहा है। मैं समझ तो जाता हूँ कि यह तुम्हारा स्पर्श है। और मीठा और चिर परिचित शब्द  कानों को सुनाई पड़ता है *उठो अब* और मैं अपने  दोनों बाजू  कंधे पर रख देता था और कहता हूँ मेरी प्यारी, मैं तुम्हें कितना ज्यादा चाहता हूँ।
और तुम्हारे होठो में उदास, मोहक मुस्कान सिमट आती है। मेरे माथे को चूमती हो सिर गोद में रख लेती हो और फिर उस दिन...........
अच्छा! तो तुम मुझे बहुत चाहते हो। चुप्पी। सच बताओं मुझे हमेशा प्यार करोगे? कभी नहीं भूलोगे? जब मैं नहीं रहूंगी तब.....भूलोगे तो नहीं न?
और निस्तब्ध देख रहा था मैं...............
...….…………....………………………....…

बुधवार, 15 दिसंबर 2021

जीने की कला (प्रेम पत्र)

जीवन जीने के लिए कला के साथ 20 वर्ष  पहले देख देखौवल हुआ, दोस्ती हुई। आरम्भ में तो लगा तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध ही मैं लगातार बस तुम्हारे पास रहने की कोशिश कर रहा हूँ, तुम्हारे निकट के लोग मुझे तुम्हारे पास फटकने ही नहीं देते थे और ऐसा भी नहीं था कि वो मुझे जबरदस्ती नहीं अाने दे रहे थे। बल्कि लगातार मेरा परीक्षण कर रहे थे कि मैं तुम्हारी निकटता या कहूँ कि दोस्ती को पाने के काबिल हूँ, मेरी नीयत साफ है या नहीं। तुम्हारी निकटता से ही मैंने खुद से दोस्ती की। खुद को जाना। तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध ही मैंने तुमसे एकतरफा इश्क किया है। तुम्हारी वजह से ही मुझे मेरी आवाज़ भी अच्छी लगने लगी और तुम्हारी आवाज़ का नशा पूरे ज़माने में चढ़ गया है। अक्सर लगता रहा कि मैंने शब्दों से दोस्ती कर ली है और सुरों से इश्क। और अब तो सुरों और शब्दों के साथ रहते मैं कभी अकेला नहीं होता। इन्ही के साथ चाय पीता लेता हूँ और ठण्ड में भी इन्ही के साथ रज़ाई में चुहलबाज़ी होती है। दिन ब दिन मेरी सांसो के आरोह अवरोह में सुरो और शब्दों के ही धड़कन बन गये है। तुम्हारी याद आते ही शब्द सुरो में बदल गुनगुनाने लगते है और धड़कने लय में बदल जाते है। तुम ही मेरी सबसे सीधी साधी साथी हो तुम्हारे साथ रहता हूँ तो कब सुबह से दोपहर होतीह7 6 है कब शाम इल्म ही नहीं होता। जब ध्यान भंग होता है तो बीते समय को उधेड़ता हूँ कि शायद सुबह के धागे कही शाम में फंसे होंगे तो निकल आएंगे। पर कितने ही पापड़ बेले प7र गुज़री सुरीली शाम नहीं मिलती और वही उधेड़बुन शुरू रहती है। अब ये मेरा इश्क है या नाटक जो मुझे तुमसे बंधे रखता है। लगता है जैसे मेरी रगों में अब खून नहीं तेरा इश्क बहने लगा है। बस ये इश्क बहना जिस दिन बंद होगा उसी दिन.………। सारा सुर, शब्द, लय, ताल, धुन सब बेसुरा बेताल हो जायेगा। उम्मीद करता हूँ तेरा इश्क मेरी रगों में उम्रभर बहता रहेगा और दुनिया हमारे इश्क पर फक्र करेगी। और उम्मीद करता हूँ कि पूरी दुनिया मेरी तरह तेरे इश्क के कलाम लिखेगा, सुरों को सजाएगा, और शब्दों की रचना करेगा।
अब आगे क्या लिखूँ तुम खुद ही ज्ञान के सागर हो थोड़े को बहुत समझों तुम्हारे जवाब के इंतज़ार में 

मनोज कुमार मिश्रा

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

विश्व धरोहर में भारतीय रंगमंच का स्थान

विश्व धरोहर में भारतीय रंगमंच को स्थान मिले।

हिंदी भाषा का प्रथम नाटक आनंद रघुनंदन रीवा की पुण्य धरा पर लिखा गया। वर्ष 1903 रीवा नगर में सैनिक रंगमंडल हुआ करता था। विगत वर्षों में भी आसपास के क्षेत्रों के लिए रीवा का रंगमंच संजीवनी का कार्य करता था। रीवा के रंगमंच देखकर आसपास के जिलों में रंगमंच फल फूल रहा था। रंगमंच की बढ़ोतरी के लिए, नियमित अभ्यास के लिए, प्रशिक्षण के लिए, कार्यशालाओं के लिए, संगोष्ठियों और चर्चा के लिए रीओ98ई99ईवा में रंगमंच की प्रतिष्ठा और बढ़ोतरी के लिए कृष्णा राजकपूर ऑडिटोरियम का निर्माण वर्तमान रीवा विधायक एवं पूर्व मंत्री मध्य प्रदेश शासन श्री राजेंद्र शुक्ला द्वारा करवाया गया है। विनोद कुमार मिश्रा ने मण्डप द्वारा विश्व धरोहर दिवस की प्रस्तावना रखते हुए गूगल मीट पर कहा।

कोरोना वैक्सीन की उपलब्धता के बाद रंगमंच की विविध विविधताओं में तेजी से स्थापित होने की संभावना दिख रही है भारतवर्ष में रंगमंच दर्शकों की पहली पसंद है भारतवर्ष में तीन चौथाई आबादी 32 वर्ष से कम उम्र की है लिहाजा रंगमंच के पर्यटन में भावी पीढ़ियों के लिए रोजगार की अपार संभावनाएं हैं इसके लिए सांस्कृतिक विविधता के देश और मध्य प्रदेश में बेजोड़ अनुभव, समृद्ध विरासत, अनुभव, प्रशिक्षण, प्रयोग, नवीनीकरण, शैलियों का विकास करने की अपार संभावनाएं हैं मनोज कुमार मिश्रा ने अपना वक्तव्य आगे बढ़ाते हुए कहा कि यथार्थ प्रस्तुति करने का सबसे शक्तिशाली एवं सशक्त माध्यम रंगमंच है बस कलाकारों के लिए अवसर बनाने की आवश्यकता है रीवा जिले के सभी सभागार अनदेखी का शिकार हो रहे हैं जिसमें शंभूनाथ शुक्ल सभागार रीवा विश्वविद्यालय,मेडिकल कॉलेज सभागार, टीआरएस कॉलेज में महाराजा सभागार, संस्कृत विद्यालय पचमठा सभागार, एमबीए डिपार्टमेंट विश्वविद्यालय सभागार एवं कृष्णा राज कपूर सभागार ऑडिटोरियम आदि प्रमुख है जो सांस्कृतिक दृष्टि की अनदेखी का शिकार है जबकि सांस्कृतिक और सामाजिक विकास एवं आधुनिक तकनीक की समुचित व्यवस्था से रीवा में रंगमंच अद्वितीय और बहुउपयोगी पर्यटन स्थल बन सकता है सुधीर सिंह ने अपने उद्बोधन में रंगमंच के प्रोत्साहन अभियान द्वारा मंडप के कलाकारों ने नियमित प्रदर्शनों से रंगमंच को जन-जन से जोड़ा है जिसमें अवसर आने पर उद्यमियों, व्यवसायियों, समाजसेवियों का साथ मिलता है मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केन्द्र ने मध्य प्रदेश सरकार एवं भारत सरकार के साथ मिलकर कई नाट्य समारोहों का आयोजन किया जिससे रंगमंच के क्षेत्र में विकास करने उसके प्रसार करने के नए अवसर का निर्माण हुआ। रीवा में देश के नामी कलाकारों का आवागमन नियमित आरंभ हुआ। निकट भविष्य में  रंगमंचीय कार्य-व्यापार बढ़ने की उम्मीद है विपुल सिंह अपना पक्ष रखते हुए कहा मण्डप ने जहाँ रीवा के गांवों में "देहात लोक रंगपर्व" के आयोजन के साथ ही जिले में "राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव और गदेला बाल नाट्य उत्सव कोरोना काल के कठिन दौर के बाद प्रस्तुत होंगे जिनकी तैयारी आरंभ कर दी गई है रीवा में होने वाले रंगमंचीय उत्सवों को पर्यटन में एडवेंचर खेलों के साथ ही ग्रामीण खेलों को जोड़ा जाएगा साथ ही यहां के पारंपरिक व्यंजनों को संस्कृति के साथ परोसकर वास्तविक रिमही  जीवनपद्धति से जोड़ा जाएगा। ताकि हम विश्व धरोहर में भारतीय रंगमंच को महत्वपूर्ण स्थान दिला सकें। रीवा का रंगमंच मध्यप्रदेश में प्रमुख स्थान रखता है बीते दशक में रंगमंच में पर्यटन के नाम पर रीवा के रंगमंच ने कई उपलब्धियां दर्ज की है कोरोना के चलते रंगमंच के क्षेत्र में खासी गिरावट देखने को मिली थी कुछ ऐसे अवसर भी आए जिन्होंने दुख दिया किन्तु खुश होने का अवसर अधिक दिया है।

राजमणि तिवारी ने वर्तमान जीवन में रंगमंच का बहुत महत्व है हमारी संस्कृति में रंगमंच के बिना कोई त्यौहार नहीं होता यह विचार रिमही संस्कृति से जुड़ गई है हमारे संस्कार अनमोल है इसे बचाने के लिए शासन के साथ ही आम आदमी को भी आगे आना होगा

मनोरंजन के नाम पर अंधाधुंध अपराध, अश्लीलता को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लगातार परोसा जा रहा है जिससे दर्शकों में मनोरोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है हमें स्वस्थ, ज्ञानवर्धक, संस्कार और पारिवारिक मनोरंजन रंगमंच के द्वारा ही मिलता है।

वर्तमान में युवा दर्शकों को रंगमंच से जोड़ना मुख्य चुनौती है ओटीटी प्लेटफार्म को देखकर आक्रामक होते युवाओं को रंगमंच के संरक्षण हेतु प्रशिक्षण के साथ जन सहयोग आंदोलन बनाया जाय इसके लिए सरकारों की बेपरवाही बेहद चिंताजनक है सरकार को चाहिए कि तमाम तरह के करों से रंगमंच को मुक्त कर दे। ताकि समाज में उपजी विसंगतियों को दूर करने के लिए कलाकार और प्रशासन एक साथ प्रयास करे। जिसके लिए मंचों का निर्माण, छोटे-मझोले-बडे ऑडिटोरियम का निर्माण के साथ ही सहयोगी कलाकारों नृत्य, संगीत, मूर्तिकला, चित्रकला आदि के लिए प्रशिक्षण स्थलों का निर्माण, भवनों का निर्माण शासन द्वारा होना चाहिए रंगमंच भारतीय संस्कृति का शुभ तत्व है जिसे निर्बाध रखना हमारी जिम्मेदारी है।


आलेख

मनोज कुमार मिश्रा

18/अप्रैल/2021 विश्व धरोहर दिवस

शनिवार, 4 दिसंबर 2021

रोटियाँ

रोटियाँ मनुष्यों की तरह होती हैं।
थोड़ी हवा लग जाए तो मनुष्यों अकड़ जाती है।

शनिवार, 27 नवंबर 2021

दीद ए यार

जहाँ भी जो जो महावीर इस जहाँ में
वो सबके सब अब कबीर हो गए।
नश्तर थे ज़िगर को चाक करने के
इधर कुछ अर्से से दीद ए यार हो गए

जाना

देखा इस लिबास में तो जाना।
जान लिया हमने सपने होते नहीं अपने।।

रविवार, 17 अक्तूबर 2021

ओर छोर

दुनियां के किसी छोर आर रहनेवाले ओ जीवधारी ,
तुम कुछ हो,
कोई हो,
कोई भी प्राणी हो, स्थलचर,जलचर,नभचर कोई भी 
अपनी अनजानीसम्वेदनाएँ भेजकर तुमने उपकार किया,
मैं आवर्तो में बधा हुआ 
आज कहाँ हूँ ?
अपने लोगो का हूँ
अपनी दुनिया का हूँ 
आज मै तुम्हारा हूँ 
बिलकुल ,तुम्हारा हूँ
केवल तुम्हारा हूँ 
कही रहो ,
कोई हो ,
तुम्हारा

शनिवार, 25 सितंबर 2021

ऐसी आँख कहाँ से दूँ?

ऐसी आँख कहाँ से दूँ
जो दृश्य नहीं उसका  सत्य दिखाए।
ऐसा कान कहाँ से दूँ
जो शब्द नहीं अर्थ सुनाए।
ऐसा मुँख कहाँ से दूँ
जो व्यर्थ न बोले कभी।
ऐसा हाथ कहाँ से दूँ
जो दूसरे की ज़रूरत समझ सके।
ऐसा सिर कहाँ से दूँ
जो झुका ही रहे सदा।
ऐसा कर्म कहाँ से दूँ
जो याद रहे सदा

(जिज्ञासा जीवन का आधार)
मनोज कुमार मिश्रा

बुधवार, 21 जुलाई 2021

शहरी एवम ग्रामीण दर्शक

शहरी एवं ग्रामीण दर्शक

किन्तु भारतीय रंगमंचीय व्यवस्था में हम मुख्य रूप से दो हिस्से में बांटते है शहरी रंगमंच और ग्रामीण रंगमंच| शहरी और ग्रामीण रंगमंच की अपनी विशेषताएँ है| शहरी रंगमंच के दर्शक जहों अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने आते है वहीँ गाँवों के दर्शक अपना सम्बन्ध का निर्वाह करने आते है| शहरे रंगमंच में पैसे का महत्व होता है वहीँ गमीं दर्शक भाव प्रधान होकर आती है| शहरी रंगमंच के दर्शक में दिखावा ज्यादा होता है जबकि ग्रामीण दर्शक में सादगी रहती है| शहरी दर्शक कलाकार निर्देशक या प्रस्तुतकर्ता से मिल कर संतुष्ट करता है कि वह प्रस्तुति देखने आया था किन्तु ग्रामीण दर्शक प्रस्तुति को बहस में रखता है और अपने मानस पटल में अंकित कर लेता गाहे बगाहे उसका उद्धरण करता रहता है| शहरी दर्शक समय का पाबंद होता है जबकि ग्रामीण दर्शक, उत्साह और भाव से चलता है| समय का गुलाम नहीं है। शहरी दर्शक कार्यक्रम से ज्यादा मेलमिलाप के लिए आते है| ग्रामीण दर्शक आनन्द के लिए आते है| शहरी दर्शक स्वयं चरित्र बनकर आता है ग्रामीण दर्शक चरित्रों को देखने आता है| शहरी दर्शक में शोषक भी होते है| ग्रामीण दर्शक में अधिकतर शोषित ही होता है| शहरी दर्शक प्रायोजक बन आते है ग्रामीण दर्शक अपने क्षेत्र में प्रस्तुति है इसलिए आते है| शहरी आत्म केन्द्रित होते है जबकि ग्रामीण सहयोगी होते है| शहरी दर्शक चमत्कार/जादू पसंद करता है| ग्रामीण दर्शक गीत, संगीत और कलाकारी को महत्व देता है| शहरी दर्शक मंच में बुलावे के लिए आसक्त रहते है ग्रामीण दर्शक कार्यक्रम के भाव में डूबे रहते है| शहरी दर्शक आलोचक एवं तुलनात्मक होते है ग्रामीण दर्शक प्रयास की प्रशंसात्मक रहते है| शहरी दर्शक दर्शन देने आते है ग्रामीण दर्शक दर्शन लेने आते है| शहरी दर्शक चालाक होते है फायदा नुकसान देखकर ही निर्णय करते है ग्रामीण दर्शक ईमानदार होते है संस्कार और आदत के कारण देखते है| शहरी दर्शक राजनीतिक पक्ष से सम्बद्धता द्वारा फायदा तलाशते है| ग्रामीण दर्शक कार्यक्रम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाते है| शहरी दर्शक अपने मोबाईल की जरूरत पूरी करते है जबकि ग्रामीण अपने बच्चों के साथ कलाकारों की प्रतिभा को आंकते है| शहरी दर्शक उपहार स्वरुप निमंत्रण या रूपया प्रदान करते जब कि  ग्रामीण दर्शक कर्म प्रधान वस्तुओं को प्रदान करते है| किन्तु अपवाद सभी जगह होते है| और वर्तमान में भारतीय जनमानस आर्थिक असंवेदी युग है यहाँ भावनाएं ही सबसे पहले दम तोड़ती है| किन्तु जहाँ भावनाएं जीवित है वहीं सम्भावानाएं भी है हम सबको सतत सकारात्मक प्रयास से आगे बढ़ना होगा|  

ऐसी ही और भी बहुत सी विशेषताएँ होती है जो शहरी दर्शकों को ग्रामीण दर्शकों से अलग करती है| और ग्रामीण दर्शकों को विशेष बनाती है|

रंगमंचीय पर्यटन

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के क्रिसमस संस्करण में प्रकाशित किया गया है जो इन्सान प्रत्येक महीने में रंगमचीय प्रस्तुतियों को देखता है वह सामान्य से ज्यादा स्वस्थ रहता है| सामान्य से ज्यादा सुकून में रहता है| रोगों और व्याधियों का खतरा कम होता, मन प्रफुल्लित और सकारत्मक उर्जा से भरा रहता है| रंगमंचीय प्रस्तुतियों में नाटक, नृत्य, गायन, वादन, जादू, सर्कस, पारिवारिक फिल्में आदि विधाओं को शामिल किया गया था| 

शोध में रंगमंचीय प्रस्तुतियों के साथ ही कला संग्रहालयों को भी शामिल किया गया है| इन संग्रहालयों में मनुष्य तस्वीरों को देखता है रंगों को देखता है| रेखाओं को देखता है| संरचना को देखता है भावों पर विचार करता है इससे दिमाग़ संतुलित होता है उसमें सोचने, समझने और समझाने की प्रवृत्ति भी उभरती है|

यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि आप यदि लम्बी ज़िन्दगी जीना चाहते है| तो इसके लिए आपको महीने में एक बार सभागारों, संग्रहालयों, आर्ट गैलरियों, सिनेमाघरों में घूमने जाना चाहिए| शोधकर्ताओं ने 50 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 7000 वयस्क व्यक्तियों के सेहद पर लगातार 12 वर्ष तक यह शोध किया है| और पाया कि जो लोग रंगमंच की किसी भी विधा को लगातार देखते रहते है और उन्हें पसंद करते रहते है उन्हें देखने जाते रहते है| उनकी जल्दी मृत्यु के जोखिम में 31 प्रतिशत की कटौती हो जाती है| इस शोध में लन्दन के शोधकर्ताओं ने दावा किया गया है| कि हर महीने एक बार रंगमंच देखने से किसी भी व्यक्ति की जल्दी मौत होने का खतरा कम हो जाता है| शोधकर्ताओं ने पाया कि कला से जुड़े लोगों की मृत्यु की संभावना में 14 प्रतिशत की कमी थी| शोध में ऐसे साक्ष्य मिले है कि जो लोग कला से जुड़े रहे, चाहे वे तस्वीरों की तारीफ ही कर रहे है| परन्तु उनके स्वस्थ को लाभ पहुंचा है| शोधकर्ताओं ने कहा कि महीने में सिर्फ एक बार भी थियेटर जाने से व्यक्ति के मानसिक स्वस्थ में सुधार हो सकता है| और रंगमंच व्यक्ति के शारीरिक गतिविधियों को भी प्रोत्साहित कर सकती है| हालांकि मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक गतिविधियों को विशेष ध्यान में रखते हुए आर्ट गैलरी को लम्बी उम्र के साथ जोड़ कर शोध किया गया| शोध के लेखक डॉक्टर डेजी फैन्कोर्ट ने कहा की इस बात के लिए अभी और परीक्षण करने की जरूरत है कि रंगमंच में मंचनों को देखने से कम उम्र में होने वाली मौतों को कैसे रोका जा सकता है| डॉक्टर डेजी फैन्कोर्ट ने प्रतिभागियों को औसतन 12 वर्ष तक देखा और इस नतीजे तक पहुंची|

बुधवार, 14 जुलाई 2021

कला के नाम प्रेम पत्र

तुम्हारे लिए सिर्फ
शब्दों की कमी से मैं लगातार जूझ रहा हूँ। कहने को रोज बहुत रहता है पर जैसे ही समय होता है कहने का, हमेशा मन मार बैठ जाता हूँ  कि कहीं तुम पूँछ न लो की तुम कैसे हो। इसका जवाब ही नहीं मिल पा रहा है तो बात आगे कैसे बढ़ेगी, हालाँकि जरूर गड़बड़ मेरी ही तरफ़ से होगी नहीं तो क्या कोई इतना सताता है परेशां करता है।
खैर आज फिर हिम्मत तो जुटा लिया पर कमबख्त शब्दों ने धोखा दे ही दिया। समय पर ये हथियार काम नहीं आये।  इस बार फिर से इशारे से बात होगी क्या? तुम्हारी इसी तासीर पर तो मैं फ़िदा हूँ। न इधर - न उधर, बिना क्रोध के चाहे कितना ही छींटाकसी करे, तुम्हारे लिए, तुम सिर्फ मुस्कुराती चलती जाती हो।
कभी कभी तो डर बहुत लगता है कि कहीं तुमने मेरी इस तंग गली से निकलना बंद कर दिया तो मैं क्या करूंगा और कुछ आता भी तो नहीं है।
खाना पीना छोड़ भी नहीं सकता क्योकि भूख बहुत लगाती है। और मुझे तो तेरा स्वाद लग गया है। कोई कुछ कहे अब तो फर्क नहीं ही पड़ता है। *बद अच्छा बदनाम बुरा* अब जो होगा देखा जायेगा।
फिलहाल इतना ही
सिर्फ तुम्हारा,
मनोज कुमार मिश्रा

रविवार, 11 जुलाई 2021

विश्व धरोहर में भारतीय रंगमंच को स्थान मिले।

विश्व धरोहर में भारतीय रंगमंच को स्थान मिले।

हिंदी भाषा का प्रथम नाटक आनंद रघुनंदन रीवा की पुण्य धरा पर लिखा गया। वर्ष 1903 रीवा नगर में सैनिक रंगमंडल हुआ करता था। विगत वर्षों में भी आसपास के क्षेत्रों के लिए रीवा का रंगमंच संजीवनी का कार्य करता था। रीवा के रंगमंच देखकर आसपास के जिलों में रंगमंच फल फूल रहा था। रंगमंच की बढ़ोतरी के लिए, नियमित अभ्यास के लिए, प्रशिक्षण के लिए, कार्यशालाओं के लिए, संगोष्ठियों और चर्चा के लिए रीवा में रंगमंच की प्रतिष्ठा और बढ़ोतरी के लिए कृष्णा राजकपूर ऑडिटोरियम का निर्माण वर्तमान रीवा विधायक एवं पूर्व मंत्री मध्य प्रदेश शासन श्री राजेंद्र शुक्ला द्वारा करवाया गया है। विनोद कुमार मिश्रा ने मण्डप द्वारा विश्व धरोहर दिवस की प्रस्तावना रखते हुए गूगल मीट पर कहा।

कोरोना वैक्सीन की उपलब्धता के बाद रंगमंच की विविध विविधताओं में तेजी से स्थापित होने की संभावना दिख रही है भारतवर्ष में रंगमंच दर्शकों की पहली पसंद है भारतवर्ष में तीन चौथाई आबादी 32 वर्ष से कम उम्र की है लिहाजा रंगमंच के पर्यटन में भावी पीढ़ियों के लिए रोजगार की अपार संभावनाएं हैं इसके लिए सांस्कृतिक विविधता के देश और मध्य प्रदेश में बेजोड़ अनुभव, समृद्ध विरासत, अनुभव, प्रशिक्षण, प्रयोग, नवीनीकरण, शैलियों का विकास करने की अपार संभावनाएं हैं मनोज कुमार मिश्रा ने अपना वक्तव्य आगे बढ़ाते हुए कहा कि यथार्थ प्रस्तुति करने का सबसे शक्तिशाली एवं सशक्त माध्यम रंगमंच है बस कलाकारों के लिए अवसर बनाने की आवश्यकता है रीवा जिले के सभी सभागार अनदेखी का शिकार हो रहे हैं जिसमें शंभूनाथ शुक्ल सभागार रीवा विश्वविद्यालय,मेडिकल कॉलेज सभागार, टीआरएस कॉलेज में महाराजा सभागार, संस्कृत विद्यालय पचमठा सभागार, एमबीए डिपार्टमेंट विश्वविद्यालय सभागार एवं कृष्णा राज कपूर सभागार ऑडिटोरियम आदि प्रमुख है जो सांस्कृतिक दृष्टि की अनदेखी का शिकार है जबकि सांस्कृतिक और सामाजिक विकास एवं आधुनिक तकनीक की समुचित व्यवस्था से रीवा में रंगमंच अद्वितीय और बहुउपयोगी पर्यटन स्थल बन सकता है सुधीर सिंह ने अपने उद्बोधन में रंगमंच के प्रोत्साहन अभियान द्वारा मंडप के कलाकारों ने नियमित प्रदर्शनों से रंगमंच को जन-जन से जोड़ा है जिसमें अवसर आने पर उद्यमियों, व्यवसायियों, समाजसेवियों का साथ मिलता है मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केन्द्र ने मध्य प्रदेश सरकार एवं भारत सरकार के साथ मिलकर कई नाट्य समारोहों का आयोजन किया जिससे रंगमंच के क्षेत्र में विकास करने उसके प्रसार करने के नए अवसर का निर्माण हुआ। रीवा में देश के नामी कलाकारों का आवागमन नियमित आरंभ हुआ। निकट भविष्य में  रंगमंचीय कार्य-व्यापार बढ़ने की उम्मीद है विपुल सिंह अपना पक्ष रखते हुए कहा मण्डप ने जहाँ रीवा के गांवों में "देहात लोक रंगपर्व" के आयोजन के साथ ही जिले में "राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव और गदेला बाल नाट्य उत्सव कोरोना काल के कठिन दौर के बाद प्रस्तुत होंगे जिनकी तैयारी आरंभ कर दी गई है रीवा में होने वाले रंगमंचीय उत्सवों को पर्यटन में एडवेंचर खेलों के साथ ही ग्रामीण खेलों को जोड़ा जाएगा साथ ही यहां के पारंपरिक व्यंजनों को संस्कृति के साथ परोसकर वास्तविक रिमही जीवनपद्धति से जोड़ा जाएगा। ताकि हम विश्व धरोहर में भारतीय रंगमंच को महत्वपूर्ण स्थान दिला सकें। रीवा का रंगमंच मध्यप्रदेश में प्रमुख स्थान रखता है बीते दशक में रंगमंच में पर्यटन के नाम पर रीवा के रंगमंच ने कई उपलब्धियां दर्ज की है कोरोना के चलते रंगमंच के क्षेत्र में खासी गिरावट देखने को मिली थी कुछ ऐसे अवसर भी आए जिन्होंने दुख दिया किन्तु खुश होने का अवसर अधिक दिया है।

राजमणि तिवारी ने वर्तमान जीवन में रंगमंच का बहुत महत्व है हमारी संस्कृति में रंगमंच के बिना कोई त्यौहार नहीं होता यह विचार रिमही संस्कृति से जुड़ गई है हमारे संस्कार अनमोल है इसे बचाने के लिए शासन के साथ ही आम आदमी को भी आगे आना होगा

मनोरंजन के नाम पर अंधाधुंध अपराध, अश्लीलता को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लगातार परोसा जा रहा है जिससे दर्शकों में मनोरोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है हमें स्वस्थ, ज्ञानवर्धक, संस्कार और पारिवारिक मनोरंजन रंगमंच के द्वारा ही मिलता है।

वर्तमान में युवा दर्शकों को रंगमंच से जोड़ना मुख्य चुनौती है ओटीटी प्लेटफार्म को देखकर आक्रामक होते युवाओं को रंगमंच के संरक्षण हेतु प्रशिक्षण के साथ जन सहयोग आंदोलन बनाया जाय इसके लिए सरकारों की बेपरवाही बेहद चिंताजनक है सरकार को चाहिए कि तमाम तरह के करों से रंगमंच को मुक्त कर दे। ताकि समाज में उपजी विसंगतियों को दूर करने के लिए कलाकार और प्रशासन एक साथ प्रयास करे। जिसके लिए मंचों का निर्माण, छोटे-मझोले-बडे ऑडिटोरियम का निर्माण के साथ ही सहयोगी कलाकारों नृत्य, संगीत, मूर्तिकला, चित्रकला आदि के लिए प्रशिक्षण स्थलों का निर्माण, भवनों का निर्माण शासन द्वारा होना चाहिए रंगमंच भारतीय संस्कृति का शुभ तत्व है जिसे निर्बाध रखना हमारी जिम्मेदारी है।

आलेख

मनोज कुमार मिश्रा

18/अप्रैल/2021 विश्व धरोहर दिवस पर

रविवार, 20 जून 2021

आना

वो तो कमबख्त है जब आती है।
न नींद आती है न याद आती है।।

बुधवार, 16 जून 2021

हमने बनाया

हमने बनाया अजी हमने बनाया 
गोइठा बनाया, मिट्टी कि गाडी बनाया,
चिमटा बनाया, शेर बनाया, राजा बनाया है, झाड़ू बनाया, माला बनाया।
बैल बनाया है, गधा बनाया।
पेड़ बनाया,
नर बनाया भोली भाली नार बनाया|
रोटी बनाया, मिठाई बनाया।
फूल बनाया,
कबाड़ बनाया।
बिल्ली बनाया, बन्दर बनाया
हवन बनाया।
ईगो मोटल्ली भैसीं बनाया, उसका ख़ूबसूरत चेहरा बनाया।
आरती कि थाल बनाया, अन्नपूर्णा देवी बनाया। मुरारी और श्याम बनाया ओखे संग कंस बनाया।
गाँव बनाया, हाट बाज़ार बनाया।
लालटेन बनाया कबहूँ कबहूँ गीत बनाया।
गैल बनाया रैल बनाया कबहूँ कबहूँ पुलिस बनाया।
गुण बनाया, अवगुण बनाया, सगुन बनाया असगुन बनाया.....

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

जीवन

जीवन को जीवन कहदे कायदे से कोई।
हुस्न इल्म और मकसद साकार हो जाय।