रविवार, 19 दिसंबर 2021

'जान' साथ होने पर यकीन करता हूँ

'जान' तुम्हारे होने का मैं यक़ीन करता हूँ और अगर दुनियावी लोगों को अपने ही जितना यकीन  दिला सकता। तो फिर हमारा इश्क समय के दायरे से बाहर हो जाता हमारी मुहब्बत के अमर होने का यही राज़ होता कि हमारी कहानियों को सुनाने और सुनने वाले को उस दुनिया की सैर करवाती जो इस काल खंड के परे है
कभी कभी लगता है समय के अनुसार मैं बहुत वषों बाद पैदा हुआ और इस समय में मेरी कोई खास उपयोगिता नहीं है और कभी लगता है कि थोड़ी देर और हो जाती तो........ संवेदनशीलता ने तो कहीं ज़्यादा जकड़ने की कोशिश तो शुरू नहीं कर दी है। यहाँ वजह सिर्फ इतनी ही है कि सौपें गए कार्यों को या स्वस्फूर्त किये जा रहे कार्यों को नए तरीके से देखने समझने और महसूस करने लगा हूँ, घिसेपिटे तौर-तरीकों से अब मेरा इत्तेफाक नहीं है। दायित्वों को अपने और तुम्हारे सम्बन्ध की मधुरता की तराजू में तौलकर उसका भाव तय करता हूँ।
बचपन सदैव सुख के दिन होने चाहिए या होते ही है, जो अब हमारे जीवन में कभी नहीं लौटेंगे। क्या मैं कभी बचपन की कोई भी स्मृति भुला सकता हूँ? उन दिनों के बारे में सोचकर हृदय प्रफुल्लित हो जाता है मुख में बार-बार स्मित मुस्कान छा जाती है अंतस में नवीन नूतन उत्कृष्ठता के अनुभव को महसूस करने लगता हूँ।
याद आता है कि मेरे लिये बातें सुनने के शौक को दबाना किस कदर मुश्किल था। और तुम हमेशा बातों को कहती रहती थी। इधर मैं तुम्हारी प्यारी, मधुर स्वर मंजरियों को सुनता रहता। नींद में डूब जाने के बाद भी मुझे तुम्हारी आकृति के पहलू में शांत विश्राम कर रहा हूँ।
अत्यधिक भीड़ में भी स्वयं अपने आपको समेट कर बैठ रहता। लोग सोचते थे/है। सोया हुआ है, सुस्त है, खोया हुआ है। जबकि मैं तुम्हारे शब्दों की खुशबू में तुम्हारे साथ उड़ता रहता था........आज भी तैरता रहता हूँ गोते लगाता रहता हूँ। यह सच है तुम अधिकतर मेरी कल्पना में दिव्य के रूप में ही दिखती हो इधर आकर तुम्हारा चेहरा अब तो और कम साफ दिखता है जितना करीब पहुंचना चाहता हूँ उतनी धुँधली और मोहक तुम्हारी तस्वीर हो रही है जिज्ञासाएँ तेज़ी से बढ़ रही है। नीद से आँखें बोझिल और पलकें नींद से भारी हो जाती है। सब लोग सो जाते है तब कभी आधी नींद में मुझे लगता है जैसे कोई मुझे अपने कोमल मुलायम हांथों से छू रहा है। मैं समझ तो जाता हूँ कि यह तुम्हारा स्पर्श है। और मीठा और चिर परिचित शब्द  कानों को सुनाई पड़ता है *उठो अब* और मैं अपने  दोनों बाजू  कंधे पर रख देता था और कहता हूँ मेरी प्यारी, मैं तुम्हें कितना ज्यादा चाहता हूँ।
और तुम्हारे होठो में उदास, मोहक मुस्कान सिमट आती है। मेरे माथे को चूमती हो सिर गोद में रख लेती हो और फिर उस दिन...........
अच्छा! तो तुम मुझे बहुत चाहते हो। चुप्पी। सच बताओं मुझे हमेशा प्यार करोगे? कभी नहीं भूलोगे? जब मैं नहीं रहूंगी तब.....भूलोगे तो नहीं न?
और निस्तब्ध देख रहा था मैं...............
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