मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

संस्कृत की श्रेष्ठ पुस्तकें

❒ प्राचीनकाल की महत्वपूर्ण पुस्तकें
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1-अस्टाध्यायी               पांणिनी
2-रामायण                    वाल्मीकि
3-महाभारत                  वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य
5-महाभाष्य                  पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन
7-बुद्धचरित                  अश्वघोष
8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता        भास
11-कामसूत्र                  वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम्           कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास 
14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास
15-मेघदूत                    कालिदास
16-रघुवंशम्                  कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास
18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता               बरामिहिर
23-पंचतंत्र                  विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर        सोमदेव
25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त
27-रावणवध।              भटिट
28-किरातार्जुनीयम्       भारवि
29-दशकुमारचरितम्     दंडी
30-हर्षचरित                वाणभट्ट
31-कादंबरी                वाणभट्ट
32-वासवदत्ता             सुबंधु
33-नागानंद                हर्षवधन
34-रत्नावली               हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव         भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय     जयानक
38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर
39-काव्यमीमांसा         राजशेखर
40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन         राजभोज
42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण
45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द            जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो         चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी           कल्हण
49-रासमाला               सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध          माघ
51-गौडवाहो                वाकपति
52-रामचरित                सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र
54-भगवत्अज्जुकियं    बोधायन

रविवार, 26 नवंबर 2017

रीवा में आराध्य देवी शक्तिपीठ

आराध्य देवियाँ रीवा जिला

दक्षिण में बालाजी, उत्तर में मां वैष्णो देवी। विंध्य में मां शारदा और विंध्यवासिनी। पश्चिम में पुष्कर तो पूर्व में बंगाल की मां काली। हर तीर्थ और मंदिर का अपना इतिहास है, लेकिन बात रीवा रियासत की करें तो यह देश का इकलौता स्थान है, जहां नौ देवियां सैकड़ों साल से अपनी कृपा बरसा रही हैं। बघेल राजाओं द्वारा नौ देवियों को स्थापित करने का उद्देश्य दुश्मनों की बुरी नजर से बचना, रियासत में सुख-शांति था। पेश है रिपोर्ट...।

मां कालका मंदिर: रानी तालाब में रीवा शहर का सबसे चर्चित मंदिर है। यहां पर मां कालका विराजमान हैं। नवरात्र में हजारों भक्त माथा टेकते हैं। कहते हैं मन की भावनाओं को भांप कर मां प्रसन्न हो जाती हैं। यहां सिद्धि के लिए बलि भी दी जाती है। मां की प्रतिमा 450 वर्ष पूर्व एक व्यापारी दल ने यहां छोड़ दी थी। रीवा रियासत के राजाओं ने इस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया। ऐसी किदवंती है। वर्तमान में यहां भव्य मंदिर है।

महिषासुर मर्दनी
राजवंश की देवी के रूप में महिषासुर मर्दनी की स्थापना रीवा किले के जगन्नाथ परिसर में की गई थी। तब से इनकी पूजा-अर्चना होती आ रही है। नवरात्र के दिनों में यहां पर भक्तों की आस्था देखते ही बनती है। महामृत्युंजय भगवान के साथ महिषासुर मर्दनी के दर्शन सौभाग्यशाली होते हैं।

मां उग्रतारा देवी
रीवा किले के बाहर उपरहटी में बंगाली टोला में मां उग्रतारा देवी का मंदिर स्थित है। कहते हैं भगवान शंकर को मां उग्रतारा देवी ने ही दूध पिलाया था। मां उग्रतारा से ही भगवान शंकर को तीसरा नेत्र प्राप्त हुआ था। नवरात्र में मां के दरबार में भक्तों का डेरा लगता है।

कौमारी माता
रीवा किले के पूर्वी हिस्से के अखाड़घाट में स्थित कौमारी माता का मंदिर है। आस्था का यह केंद्र है। कहते हैं कि जिन कन्याओं का विवाह नहीं होता है। यहां पूजन के बाद उनका विवाह जल्द होने की संभावना रहती है। इसी आकांक्षा में मां के दरबार में युवतियां माथा टेकने आती हैं।

मां फूलमती देवी
रीवा शहर में समान तिराहे से बाण सागर कालोनी आते समय नए बस स्टैंड के पीछे मां फूलमती देवी का मंदिर है। जिन्हें रीवा राज्य के राजाओं द्वारा स्थापित किया गया था। फूलमती देवी जिन्हें वन देवी के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्र में इनकी पूजा-अर्चना फलदायी होती है।

मां जालपा देवी
उपरहटी में किले के बाहर मां जालपा देवी की प्रतिमा स्थापित है। किले से 150 मीटर की दूरी पर रीवा रियासत के राजाओं ने इस मंदिर की नींव रखी थी। यह देवी मंदिर अखंड ज्योति का प्रतीक है। इन्हें ज्वाला देवी का स्वरूप माना जाता है।

मां शीतला माता
अमहिया मोहल्ले के रास्ते पर स्थित मजार के पास नीम के पेड़ के नीचे मां शीतला माता का मंदिर स्थापित है। यह देवी आपदा, महामारी से तो बचाती ही हैं, बच्चों की रक्षा के लिए जानी जाती हैं। जहां माताएं शीतला अष्टमी को चूड़ी मिष्टान चढ़ाती हैं।

मां विंध्यवासिनी देवी
रीवा शहर के तरहटी मोहल्ले में नगरिया स्कूल के आगे स्थित मां का मंदिर हर दिन आस्था का केंद्र है। कहते हैं पृथ्वी की उत्पत्ति से ही विंध्य पर्वत का उदय हुआ था। माता देवकी के कारण से जन्मी और मामा कंस के हाथों से पटकी गई देवी ही मां विध्यवासिनी हैं।

मां शारदा मंदिर
रीवा में फोर्ट रोड स्थित सुदर्शन कुमारी विद्यालय के पास मां शारदा मंदिर स्थित है। यहां स्वर की देवी, ज्ञान की देवी, शिक्षा की देवी और आल्हा-ऊदल की आराध्य देवी मां शारदा विराजमान हैं। लोगों की श्रद्धा का यह प्रमुख केंद्र है। नवरात्रों में यहां भारी भीड़ उमड़ती है।

रविवार, 22 अक्तूबर 2017

अर्थदोष

 
     “नाटक अर्थदोष का उन्नति लिखित विवरण
मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र, रीवा का प्रतिष्ठा आयोजन|

विन्ध्य में रंगमंच की अपनी सुदीर्घ परंपरा है| विन्ध्य प्रदेश की राजधानी रही रीवा| जहाँ वर्ष 1903 में विन्ध्य प्रदेश के महाराजा विश्वनाथ सिंह जू देव के समय में सैनिक रंगमंडल रंगमंच कर रहा था उन 15 वर्षों में 21 नाटकों का मंचन किया गया साथ ही पृथ्वीराज कपूर साहब ने रीवा में अपने नाटको का मंचन किया था| इसी परंपरा का निर्वाहन मण्डप पिछले 10 वर्षो से अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से कर रहा है संस्था के नाटको में मनुष्य के अस्तित्व उसके दर्शन एवं मानवीय संवेदनाओं के द्वन्द को सहजता एवं दृढ़ता पूर्वक प्रस्तुति को नया कलेवर प्रदान करना है| इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर हमने नाटक में लोककलाओं के समावेष के साथ ही बोलियों के रंगमंच में हो रहे नए प्रयोग को भी महत्त्व दिया गया है|
मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र के लिए नाटक करना शौक नहीं बल्किअभियानहै| रीवा में मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र ने रंगमंच के क्षेत्र में ज्यादा स्थान घेरा है| रीवा देश का ऐसा शहर है जिसमें सभागार नहीं है परन्तु जुझारूपन से अपने कलाकारों के साथ मिलकर एक अंतर्राष्ट्रीय नाट्य कृति को बघेली बोलिबानी में उतारा और प्रस्तुति को सराहा गया|
नाटक बघेली लोककथा पर आधारितबघेली बोलीमें है| वर्तमान समय में मनुष्य ने  अपने आसपास एक झूठा संसार स्थापित कर लिया है यह आजकल तकरीबन सबने ही कर रखा है| परन्तु समाज उन्हें किसी किसी कारण द्वारा यथार्थ से परिचय करा ही देता है| प्रस्तुति अर्थादोष नाटक अल्बेयर कामू के प्रसिद्ध नाटक मिस अंडरस्टैंडिंगका बघेली बोलिबानी में रूपांतरण है| जोकि मनुष्य के असंतुष्टि के मुहावरे को


चरित्रार्थ करता है| नाटक का निर्देशन मनोज कुमार मिश्रा (भा.ना..) का है| नाटक  समाज के बुद्धिजीवियों के सामने प्रश्न खड़ा करता है| प्रस्तुति के बाद नाटक का तुलनात्मक अध्ययन भी दर्शकों के बीच हुआ| मंचन के बाद अगले दिवस सुबह नाटक पर परिचर्चा सत्र हुआ| जिसमे बुद्धिजीवियों, नाट्यनिर्देशक एवं नाट्य समूह के कलाकार शामिल हुए और नाट्य प्रस्तुति की शैली, प्रकार, कथावस्तु, वेशभूषा, संगीत, एवं नाटक में निर्देशक और अभिनेताओं के अभिनव प्रयोगों पर विस्तार से चर्चा हुई| जिसमे इसमें संस्था की तरफ से हनुमंत किशोर, जयराम शुक्ल, चन्द्रिका प्रसादचन्द्र’,योगेश त्रिपाठी, चंद्रशेखर पाण्डेय आदि प्रमुख वक्ता के रूप में थे|
बघेलखंड की लोककथाओं में एक प्रसिद्ध लोक कथा है बैरगिया नाला| यह कथा मूल रूप में सभी लोक संस्कृतियों में किसी किसी रूप में स्थापित है| राजस्थानी बोली में विजयदान देथा बिज्जी भाईकी कहानी तो लिखित रूप में है इधर अल्बेयर कामू का नाटक the misunderstanding(अर्थदोष)भी इस कथा से मिलताजुलता है| कथा में झूठ, फरेब, लूट के साथ-साथ सामाजिक संरचना की अजीब गुत्थी है| भावनाओं का ऐसा जाल अन्यत्र कम ही देखने को मिलाता है| कामू के नाटक the misunderstanding में मुख्य पात्र माँ, बेटी और बेटा और गूगां नौकर सच्चाई से सामना करवाने के लिए बहू है|जोकि मार्था को सच्चाई से साक्षात्कार करवाती है |
हमारी बघेली लोककथा में पुत्र,पिता,बड़ा भाई ,बच्चा और एक नौकर है| जहाँ कामू के नाटक में घटना स्थल होटल है वहीँ इस कथा में घटना धर्मशाला की है| इस कारण नाटक का रूपांतरण करते समय हमने बघेलखंडी सभ्यता को ही मूल मानकर माँबेटी के स्थान पर पिता पुत्र किया है| जो की बघेली कथा है और कथा के जड़ में लोभ छुपा है| पैसे की हाय-हाय, रोजगार की कमी, लालच, किसानों का पलायन, शहरीकरण, भूख के दर से मजदूर बनने की कथा है| भौतिक सुख-सुविधाओं की तलाश है| मनुष्य के दुखोंसुखों सपनों इच्छाओं प्रतिक्रियाओं,असमर्थता, निष्फलता, अवरोध एवं विरोध से समाज में प्रतिरोध की भावना लालच को जन्म देती है| और इस महत्वाकांक्षा का परिणाम हत्या या आत्महत्या होती है मार्था (परिवर्तित चरित्र पुत्र) समाज में रईस, सम्मानित सूची में शामिल होना चाहता है| परन्तु हम उसे ऐसा नहीं दिखाना चाहते की समाज में उसे घृणा की दृष्टि से देखा जाय वरन


हम मुख्य पात्र के रूप परिस्थिति को पेश किया है| जिसके कारण घटना दुखांत रूप लेती है और प्रभाव बढ़ जाता है| the misunderstanding जीवन की निर्रथकता को सार्थक समझानेवालों से तर्क करता है और मैं यहीं नाटक के मोह में फंस जाता हूँ और यही मोह कथा (नाटक) की अभिकल्पना, परिकल्पना की जमीन बनता है| नाटक का बघेली रूपांतरण के साथ बघेलखंडी सस्कृति के साथ संगीत, गीत, नृत्य, वेशभूषा, स्थान भी गया, बघेली मिटटी का रंग गया| गूंगा नौकर आम जनता की तरह घटना को देखता और महसूस करता है| परन्तु उसका अपने मत का कोई महत्व नहीं है| मनुष्य में असंतुष्टि के मुहावरे को चरित्रार्थ करता है|
इस तरह अंतर्राष्ट्रीय नाटक को बघेली बोलिबानी में उतारने का प्रयास है|
रीवा में संस्कृति विभाग, भारत सरकार के आर्थिक अनुदान के सहयोग से प्रस्तुत  नाटकअर्थदोष मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र, रीवा के प्रतिष्ठा आयोजन की गूँज चतुर्दिक है| आपके सहयोग के बिना यह पुष्प रीवा में नहीं फूल सकता था| संस्कृति विभाग, भारत सरकार  ने रीवा में नाट्य प्रस्तुति को आर्थिक सहयोग प्रदान कर मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र, रीवा में अपने  उत्कृष्ठ, कलात्मक एवं नवोन्मेष कार्य को करने का  अवसर प्रदान किया| आपके सहयोग से हीसभागार के आभावमें भी रीवा में नाटकों के नियमित दर्शक है|नाटक अर्थदोष की अब तक 5 प्रस्तुतियां हो चुकी है| बीरबल नाट्य समारोह सीधी, लोकनाट्य समारोह जनजातीय सग्रहालय भोपाल, नाट्यगंगा छिंदवाड़ा, और रीवा में 2 प्रस्तुतियां प्रमुख हैं||
मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र, रीवा (.प्र.) आपकी आभारी है कि संस्कृति विभाग, भारत सरकार हमें वित्तीय सहायता प्रदान कर नाट्य प्रस्तुति को सफल बनाने के निमित्त बने |
धन्यवाद