शहरी एवं ग्रामीण दर्शक
किन्तु भारतीय रंगमंचीय व्यवस्था में हम मुख्य रूप से दो हिस्से में बांटते है शहरी रंगमंच और ग्रामीण रंगमंच| शहरी और ग्रामीण रंगमंच की अपनी विशेषताएँ है| शहरी रंगमंच के दर्शक जहों अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने आते है वहीँ गाँवों के दर्शक अपना सम्बन्ध का निर्वाह करने आते है| शहरे रंगमंच में पैसे का महत्व होता है वहीँ गमीं दर्शक भाव प्रधान होकर आती है| शहरी रंगमंच के दर्शक में दिखावा ज्यादा होता है जबकि ग्रामीण दर्शक में सादगी रहती है| शहरी दर्शक कलाकार निर्देशक या प्रस्तुतकर्ता से मिल कर संतुष्ट करता है कि वह प्रस्तुति देखने आया था किन्तु ग्रामीण दर्शक प्रस्तुति को बहस में रखता है और अपने मानस पटल में अंकित कर लेता गाहे बगाहे उसका उद्धरण करता रहता है| शहरी दर्शक समय का पाबंद होता है जबकि ग्रामीण दर्शक, उत्साह और भाव से चलता है| समय का गुलाम नहीं है। शहरी दर्शक कार्यक्रम से ज्यादा मेलमिलाप के लिए आते है| ग्रामीण दर्शक आनन्द के लिए आते है| शहरी दर्शक स्वयं चरित्र बनकर आता है ग्रामीण दर्शक चरित्रों को देखने आता है| शहरी दर्शक में शोषक भी होते है| ग्रामीण दर्शक में अधिकतर शोषित ही होता है| शहरी दर्शक प्रायोजक बन आते है ग्रामीण दर्शक अपने क्षेत्र में प्रस्तुति है इसलिए आते है| शहरी आत्म केन्द्रित होते है जबकि ग्रामीण सहयोगी होते है| शहरी दर्शक चमत्कार/जादू पसंद करता है| ग्रामीण दर्शक गीत, संगीत और कलाकारी को महत्व देता है| शहरी दर्शक मंच में बुलावे के लिए आसक्त रहते है ग्रामीण दर्शक कार्यक्रम के भाव में डूबे रहते है| शहरी दर्शक आलोचक एवं तुलनात्मक होते है ग्रामीण दर्शक प्रयास की प्रशंसात्मक रहते है| शहरी दर्शक दर्शन देने आते है ग्रामीण दर्शक दर्शन लेने आते है| शहरी दर्शक चालाक होते है फायदा नुकसान देखकर ही निर्णय करते है ग्रामीण दर्शक ईमानदार होते है संस्कार और आदत के कारण देखते है| शहरी दर्शक राजनीतिक पक्ष से सम्बद्धता द्वारा फायदा तलाशते है| ग्रामीण दर्शक कार्यक्रम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाते है| शहरी दर्शक अपने मोबाईल की जरूरत पूरी करते है जबकि ग्रामीण अपने बच्चों के साथ कलाकारों की प्रतिभा को आंकते है| शहरी दर्शक उपहार स्वरुप निमंत्रण या रूपया प्रदान करते जब कि ग्रामीण दर्शक कर्म प्रधान वस्तुओं को प्रदान करते है| किन्तु अपवाद सभी जगह होते है| और वर्तमान में भारतीय जनमानस आर्थिक असंवेदी युग है यहाँ भावनाएं ही सबसे पहले दम तोड़ती है| किन्तु जहाँ भावनाएं जीवित है वहीं सम्भावानाएं भी है हम सबको सतत सकारात्मक प्रयास से आगे बढ़ना होगा|
ऐसी ही और भी बहुत सी विशेषताएँ होती है जो शहरी दर्शकों को ग्रामीण दर्शकों से अलग करती है| और ग्रामीण दर्शकों को विशेष बनाती है|
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