सोमवार, 16 दिसंबर 2019

मान मनौव्वल

जीवन जीने के लिए कला के साथ 20 वर्ष  पहले देख देखौवल हुआ, दोस्ती हुई। आरम्भ में तो लगा तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध ही मैं लगातार बस तुम्हारे पास रहने की कोशिश कर रहा हूँ, तुम्हारे निकट के लोग मुझे तुम्हारे पास फटकने ही नहीं देते थे और ऐसा भी नहीं था कि वो मुझे जबरदस्ती नहीं अाने दे रहे थे। बल्कि लगातार मेरा परीक्षण कर रहे थे कि मैं तुम्हारी निकटता या कहूँ कि दोस्ती को पाने के काबिल हूँ, मेरी नीयत साफ है या नहीं। तुम्हारी निकटता से ही मैंने खुद से दोस्ती की। खुद को जाना। तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध ही मैंने तुमसे एकतरफा इश्क किया है। तुम्हारी वजह से ही मुझे मेरी आवाज़ भी अच्छी लगने लगी और तुम्हारी आवाज़ का नशा पूरे ज़माने में चढ़ गया है। अक्सर लगता रहा कि मैंने शब्दों से दोस्ती कर ली है और सुरों से इश्क। और अब तो सुरोंऔर शब्दों के साथ रहते मैं कभी अकेला नहीं होता। इन्ही के साथ चाय पीता लेता हूँ और ठण्ड में भी इन्ही के साथ रज़ाई में चुहलबाज़ी होती है। दिन ब दिन मेरी सांसो के आरोह अवरोह में सुरो और शब्दों के ही धड़कन बन गये है। तुम्हारी याद आते ही शब्द सुरो में बदल गुनगुनाने लगते है और धड़कने लय में बदल जाते है। तुम ही मेरी सबसे सीधी साधी साथी हो तुम्हारे साथ रहता हूँ तो कब सुबह से दोपहर होती है कब शाम इल्म ही नहीं होता। जब ध्यान भंग होता है तो बीते समय को उधेड़ता हूँ कि शायद सुबह के धागे कही शाम में फंसे होंगे तो निकल आएंगे। पर कितने ही पापड़ बेले पर गुज़री सुरीली शाम नहीं मिलती और वही उधेड़बुन शुरू रहती है। अब ये मेरा इश्क है या नाटक जो मुझे तुमसे बंधे रखता है। लगता है जैसे मेरी रगों में अब खून नहीं तेरा इश्क बहने लगा है। बस ये इश्क बहना जिस दिन बंद होगा उसी दिन.………। सारा सुर, शब्द, लय, ताल, धुन सब बेसुरा बेताल हो जायेगा। उम्मीद करता हूँ तेरा इश्क मेरी रगों में उम्रभर बहता रहेगा और दुनिया हमारे इश्क पर फक्र करेगी। और उम्मीद करता हूँ कि पूरी दुनिया मेरी तरह तेरे इश्क के कलाम लिखेगा, सुरों को सजाएगा, और शब्दों की रचना करेगा।
अब आगे क्या लिखूँ तुम खुद ही ज्ञान के सागर हो थोड़े को बहुत समझों तुम्हारे जवाब के इंतज़ार में

मनोज कुमार मिश्रा

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