देहात लोक रंगपर्व 2020 की दूसरे दिवस हुआ नाटक चिड़ियाघर का मंचन
नाटक के कलाकार दोपहर में पूर्वाभ्यास कर रहे थे, टी पी एस स्कूल की आधी छुट्टी में छात्रों ने देखा और प्रबंधक श्री योगेन्द्र सिंह जी से अनुरोध किया कि नाटक मंचन हमें देखना है किंतु हम रात को नहीं आ सकते है क्या हम अभी पूरा नाटक देखा सकते है जिसका प्रस्ताव श्री सिंह ने आयोजक एवं निर्देशक आनंद प्रकाश मिश्रा के समक्ष रखा, जिसे कलाकारों ने सहयोगी कलाकारों के साथ निर्देशक की सहमति से स्वीकार किया और दोपहर डेढ़ बजे से छात्रों के लिए प्रस्तुति हुई। नाटक में छात्र भावविभोर हो गए नाटक के दौरान तियों से अपनी खुशी जाहिर की।
साथ ही देहात लोक रंगपर्व की दूसरी शाम वरिष्ठ समाजसेवी दादा अशोक सिंह एवं मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय के आनन्द मिश्रा ने माता सरस्वती के तस्वीर पर पुष्प अर्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ किया। पहली प्रस्तुति नाटक चिड़ियाघर का मंचन थर्ड बेल के बाद आरम्भ हो गया। नाटक आम आदमी के आजीविका के तलाश की कहानी है चिड़ियाघर में प्राणी संग्रहालय में संरक्षक के पद के सूचना जारी हुई है जिसमें आदमी से आदमी होने का प्रमाणपत्र मांगा जाता है, राष्ट्रीय प्रमाण पत्र कार्यालय में आदमी होने का प्रमाणपत्र बनवाने जाता है। आदमी के पास न तो सिफारिश है ना ही रिश्वत, वह आदमी भ्रष्ट समाज के चंगुल में फंस जाता हैI तब भ्रष्ट अधिकारी उसमें जानवर होने के लक्षण खोज लेता है आदमी को जानवर होने का प्रमाणपत्र बना दिया जाता हैI समाज में अधिकारी बने आदमियों और सिर्फ आदमी बने रहने के संघर्ष की कहानी है। नाटक के अंत में आदमी को जानवर के बाड़े में डाल दिया जाता है।
नाटक में अनुज द्विवेदी ने आम आदमी का किरदार बड़ी ही खूबसूरती से निभाया आम आदमी की जीवटता और संघर्ष को उजागर किया, शैलेन्द्र रघुवंशी -मैनेजर एवं परीक्षक की भूमिका में न्याय किया, साक्षी शुक्ला - माँ एवं साधू की शिष्या में अलग ही रूप में नज़र आईं, भूमिका ठाकुर - शिष्या, प्रियांशू ठाकुर गुंडा के चरित्र में जान डाल दी, हेमराज तिवारी - गवाह एवं गूगा के चरित्र ने मां मोह लिया, सुमुख मिश्रा, प्रमाणपत्र परीक्षक सहायक, आमिर खान - चौकीदार ने चरित्र को जिया, शिवेंद्र चक्रवर्ती बप्पा ने स्वामी जी एवं गवाह की भूमिका में चरित्रों की अन्तर्भावन को जीवंत किया, कर्णप्रिय सुमधुर संगीत की परिकल्पना सुरेन्द्र वानखेड़े की थी, तालवाद्य पर प्रशांत श्रीवास्तव थे वेशभूषा - रचना मिश्रा, प्रकाश परिकल्पना - मनोज मिश्रा, लेखक - हेमंत देवलेकर, निर्देशक - आनन्द प्रकाश मिश्रा प्रस्तुति सघन सोसाइटी फॉर कल्चरल एवं वेलफेयर सोसाइटी भोपाल की थी नाटक के बारे में अंतिम बात ऐसे नाटक बार बार देखे जाने चाहिए।
कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति लोकगीत एवं भजनों को दर्शक श्रोताओं ने यशो शास्त्री एवं दल से सुना। गायक यशो शास्त्री ने
अपनी प्रस्तुति में कई सुरीले एवं भावप्रद गीतों की रचनाएं सुनाए जिन्हें दर्शक श्रोताओं सिर माथे पर रखा। यशो ने तुम्हें बुलाते है गजानन, मेरे अलबेले अलबेले राम, ए जी खेलत रहौ बालू रेत मुदारिया मोरी यहां रे गिरी, अयोध्या सी नगरी हो लक्षमण से भाई हो, के जी राम जी के चढ़त चढ़ाव, आदि गीतों से मन मोह लिया। इनके साथ साथी कलाकार के रूप में प्रांजल द्विवेदी आर्गन पर, अमन सिंह तबला, अमित सोनी आक्टोपैड। कार्यक्रम के अंत में योगेन्द्र सिंह जी ने निर्देशक आनंद मिश्रा को पुष्प हार पहनाकर अभिनंदन किया, एवं सुरेन्द्र वानखेड़े का अभिनंदन अशोक सिंह ने किया। यशो शास्त्री का अभिनंदन राजेन्द्र सिंह जी ने किया। कलाकारों एवं समस्त दर्शकों का आभार समाजसेवी योगेन्द्र सिंह जी ने दिया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें