शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

खुशबू

खुशबू नहीं मिलती, कभी आमद नहीं मिलती।
इन्सान हैं ये, इनकी प्रीति नहीं मिलती।

गुरुवार, 22 अगस्त 2024

कला के नाम

कला की भक्ति आत्म का रुपांतरण मुक्त करने की बात करती है।

भक्ति का फूल प्रेम के पौधे में खिलता है और  शनैः शनैः निखरता है l यदि कला के प्रति तुम्हारा प्रेम गहरा हो तो कला का भाव अर्थपूर्ण  हो जाता है यह इतना  अर्थपूर्ण हो जाता है कि हम कला को ही अपना भगवान अपना इष्ट कहने लगते हैं l यही कारण है कि मीरा, सूरदास, रहीम, तुलसीदास आदि अपने अपने इष्ट को प्रभु कहते जाते है l इष्ट को न कोई देख सकता है, और न कोई साक्षात सिद्ध कर सकता है कि कृष्ण या राम वहां हैं; इधर मीरा, सूरदास, रहीम या तुलसीदास इस प्रेम को  सिद्ध करने में उत्सुक भी नहीं है। सबने अपने इष्ट को ही अपने निःस्वार्थ प्रेम का विशेष पात्र बना लिया है l
 और याद रहे, हम जब किसी यथार्थ व्यक्ति को अपने प्रेम का पात्र बनाते है या किसी कल्पना के व्यक्ति को, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है l कारण यह है कि यह दृश्य रूप में सारा रुपांतरण भक्ति के माध्यम से आता है, प्रेम में पात्र के माध्यम से नहीं l इस बात को सदा स्मरण रखो की यहां  कृष्ण या राम की शारीरिक उपस्थिति आवश्यक नहीं हैं; प्रेम के लिए शारिरिक उपस्थिति अप्रासंगिक है l हम एक बात जोर देकर कहना चाहते हैं कि इष्ट के होने या न होने का प्रश्न नहीं है, बिल्कुल नहीं है, भाव ही इष्ट है, समग्र प्रेम का भाव,  समग्र समर्पण, किसी में अपने को विलीन कर देना, चाहे वह हो या ना हो, विलीन हो जाना ही रुपांतरण है l अचानक व्यक्ति शुद्ध हो जाता है, समग्ररूपेण शुद्ध हो जाता है l क्योंकि जब अहंकार ही नहीं है तो तुम किसी रूप में भी अशुद्ध नहीं हो सकते l अहंकार ही सब अशुद्धि का बीज है l भाव के जगत के लिए, भक्त के जगत के लिए अहंकार रोग है। अहंकार एक ही उपाय से विसर्जित होता है _  कोई दूसरा उपाय नहीं है_वह उपाय यह है कि कला इतनी महत्वपूर्ण हो जाएं इतनी महिमापूर्ण हो जाएं कि हम धीरे-धीरे विलीन हो जाएं, और एक दिन हम बिल्कुल ही न बचे, सिर्फ हमारा बोध रह जाए l और जब हमही न रहे तब  कला सिर्फ कला नहीं रह जाती है क्योंकि कला तब तक अलग है जब तक हम अलग हैं l 
जब मैं इस नश्वर संसार से विदा होऊंगा तब मेरे साथ ही मेरी इष्ट कला  तू भी विदा हो जाएगीl अर्थात प्रेम भक्ति बन जाएगाl प्रेम ही इष्ट से साक्षात्कार का पहला कदम है।

मंगलवार, 7 मई 2024

जीवन

जीवन में सिर्फ सुबह और रात होती है।
मुस्कुराते, मुस्कुराते ही वो चले जाते हैं।

मनोज कुमार मिश्रा

गुरुवार, 17 अगस्त 2023

मां


पैरों के घुटने और नींद।
संसार के व्योम में होम हो गए।।
आंचल, हार, पाजेब, करधन सब था।
पर मेरे पास उनकी अपनी खास चप्पलें।
जिन पर स्थापित, देवी होती वो स्वयं।।

गुरुवार, 15 दिसंबर 2022

शेर

न होठों में हरकत, न ज़ुबा में जुम्बिश
बस नज़रें मिली और बात हो गई।।

रविवार, 16 अक्टूबर 2022

श्रेष्ठ


श्रेष्ठ


सफलता के अनेक रंग, रूप, आकार, प्रकृति होती है और समय के साथ बदलती रहती है

सफलता के अलग अलग विभिन्न स्तर होते है एक दिन में प्राप्त नहीं होती है और सफलता जीवन की कुछ इच्छाओं की आहूतियाँ मांगती है। जिसे देना पड़ेगा। इसलिए स्वयं कोई सफल नहीं होता बल्कि अन्य लोगों की दृष्टि में सफल होता हैI सफलता के हमारे मानक अपने आगे के पायदान में खड़े व्यक्ति को ही देखता है।

सोमवार, 10 अक्टूबर 2022

उजास

उजास

निशा घनी काली चाहे जितनी हो लेकिन मन के उजास पर छा नहीं पाती है। रोशनी का एक कतरा ही काफी है सघन गहन अंधेरे से बाहर आने के लिए। अंधेरे य प्रकाश की कमी में प्रकृति हमारे मन में डर के भाव पैदा कर देता है जबकि प्रकृति तो संसार के सभी जीवों पर सदैव स्नेहासिक्त रहती है अनुराग करती है। और इसी डर के क्रम को एक मीठी मधुर आवाज़ बढ़ा को कई गुना बढ़ा सकती है और यही मीठी मधुर आवाज़ हर भी लेती है।

संसार के समस्त भाव मिल कर मन को संचालित करते हैं।