रविवार, 22 अक्टूबर 2017

बांसनि कन्या (सतरूपा)


बांसनि कन्या

सात भाइयों की एक बहन थी जिसका नाम सुंदरिया था| माता पिता नहीं थे| परिवार बहुत गरीब था बहन सुंदरिया घर का काम करती थी भोजन बनती थी लीपना पोतना भी उसी के जिम्मेदारी थी| खेत पर भाइयों के लिए भोजन लेकर जाती और प्रेमभाव से उन्हें खिलाती थी| एक दिन सतवन भाई (छोटा भाई) ने लालभाजी खाने की इच्छा जताई| सतवन भाई के नेहवश  सुंदरिया कोलिया (घर के पास का खेत) से लाल भाजी खोंटकर (तोड़कर) लाती है| साफ पानी में धोकर लालभाजी को हंसिया से छोटे-छोटे टुकडे में काटती है उसे काटते समय उसकी हथेली में हंसिया लग जाती है| चोंट पर सुंदरिया का ध्यान नहीं जाता है| भाजी पकाने के लिए जब छोड़ती है और हाँथ धोती है तब पता चलता है कि उसकी हथेली कट गई है और उसका खून लालभाजी में पक गया है| सुंदरिया भाजी को फेंकना चाहती है और उधर दुपहरिया हो गई है| भाइयों के पास भोजन पहुँचाने का समय हो जाता है| सुंदरी वही भाजी लेकर खेत पर जाती है| और अपने भाइयों को भोजन परोसती है| भोजन करते-करते बड़ा भाई कहता है कि आज भाजी में क्या मसाला डाला है भाजी तो बहुत ही स्वादिस्ट है| सुंदरिया कहती है कि रोज की तरह ही बनाई है| बड़ा भाई ऊँची आवाज़ में बोलता है सुंदरी बता क्या है इस भाजी में| डरकर सुंदरी बताती है आज जब भाजी काट रही थी तब मेरी हथेली कट गई थी तो हाँथ खून निकला था वो उसी भाजी में मिल गया| सुंदरिया सुबुकते हुए बोली| भाजी में और कुछ नया नहीं है| सुन्दरी भाइयों को भोजन करावाकर घर चली जाती है| भाई खेतों में काम करना शुरू कर देते है| पर काम करने की गति धीमी हो जाती है| घर लौटते समय बड़ा भाई कहता है कि आज के भोजन में सुंदरी के खून मिलने से भाजी स्वादिस्ट हो गई थी| कुछ देर की चुप्पी के बाद बोलते है| सुंदरिया का खून जब इतना मीठा है तो उसका मांस कितना मीठा होगा| छोटे भाई सतवन को छोड़ सब भाई कहते हैं सही कह रहे हो दादा| और सतवन कहता है दादा आप बहुत निर्दयी है| बड़े भाई डांटते है| अगली सुबह खेत जाने से पहले सातों भाई अपना-अपना धनुष बाण लेकर जाते है जब दोपहर में सुंदरिया भोजन लेकर आती है तब बड़ा भाई उसे सेमर के पेड पर चढने के लिए कहता है| सुंदरिया पूंछती है क्यों? बड़ा भाई कहता है सेमर के ऊपर चढ़कर तुम नज़र रखों कि कोई आदमखोर जानवर तो नहीं दिख रहा है| सुंदरिया तुरंत सेमर के पेड़ पर चढ़ जाती है| और चारों तरफ देखती है| तब तक छोटे भाई को छोड़ सब भाई तीर अपने-अपने धनुष पर चढ़ा लेते है| सुंदरिया कहती है भैया यहाँ कोई आदमखोर नहीं है| इतना कहते ही बड़ा भाई तीर छोड़ देता है| जो सुंदरी को नहीं लगता है फिर बारी बारी से छोटे भाई को छोड़ सब बहन सुंदरिया पर अपने बाण से निशाना साधते है पर सुंदरिया हर बाण से बच जाती है| छहों भाइयों के बाण समाप्त हो जाते है| तब बड़ा भाई सतवन को कहता है तुम सुंदरी पर निशाना लगाओ| मै नहीं लगाऊँगा सतवन कहता है| मै सुंदरिया से स्नेह करता हूँ| बड़ा भाई कहता है तू भी मरेगा, चल सुंदरिया  पर निशाना लगा, मार| सारे भाई लगातार सतवन पर बाण साधने और सुंदरिया को मार गिराने का दबाव बनाते है| दबाव में आकर सतावन अपना बाण सुंदरिया की विपरीत दिशा में छोड़ता है लेकिन बाण घूमकर सुंदरिया को लग जाता है| सुंदरिया ज़मीन पर गिर जाती है| सतवन विलाप करता है मेरे हाँथों से प्यारी सुंदरिया को मरवा दिया| भईया तुम लोग बहुत निर्दयी हो| अच्छा बहुत निर्दयी है यही बोला था तूने | सुंदरिय को तुमने मार दिया है| फिर बोला निर्दयी कैसा होता है हम बताते हैं| अब तुम ही सुंदरिया के मांस को काटोगे, भूनोगे और मांस भात बनाओगे नहीं तो हम तुम्हें भी मार देंगे| सतवन तुम इन सात पहाड़ों को पार करके लकड़ियों का गट्ठर लाओ और ध्यान रखो कि गट्ठर को बिना गाँठ बांधे लाना है| सतवन सात पहाड़ों को पारकर एक जगह रुकता है लकडियाँ इकठ्ठा करके बिना बांधे सर पर रखता है पर लकडियाँ गिर जाती है| सतवन रोता है तो सात बहिनिया सांप आतीं है सतवन से पूंछती है क्या हुआ मनसुतिया| सतवन पूरा सच-सच बता देता है| सात बहिनियाँ आपस में सलाह कर उसे मदद करती है| कहती है कि तुम गट्ठर को अच्छे से बनाओं हम सब मिलकर गट्ठर को बाँध लेते है और भाइयों के पास पहुँचाने के बाद तुम गट्ठर को आराम से ज़मीन पर रखना हम चुपचाप चले जाएंगे| सतवन वैसा ही करता है| सतवन सातों बहिनिओं को धन्यवाद देता है| भाई जब देखते है कि लकड़ी गई तब सतवन को धान देकर भेजते है इस धान को बिना चक्की में डाले  चावल बनाकर लाओ| सतवन जंगल जाता है और नरबा (बरसती नाला) के किनारे बैठकर रोता है| चिड़िया आतीं है पूंछती है क्यों रोते हो मनसुतीय? सतवन बेटा चिड़िया को बताता है| चकरी का इस्तेमाल किये बिना धान को चावल बनाना है| चिड़िया कहती है इसमें रोने किक्या बात है| सब चिड़ियाओं को धान फोकने (धान को मुह में रखती है और दबाकर धान कि भूसी और चावल को अलग कर देती है) को कहती है और सब मिलाकर धान को चावल में तब्दील कर देते है| सतवन चिड़िया को  धन्यवाद देकर घर आता है| सतवन चावल लेकर भाइयों के पास जाता है| भाई चावल देखकर हैरान  है| तब फिर एक मटका देता है और नदी से मटके में पानी भरकर लाने के लिए कहता है|| सतवन नदी जाता है मटके में पानी भरता है| तो पानी पूरा गिर जाता है| नदी के पाट पर बैठकर रोता है| पूरी कहानी नदी कहता है| मेढक राजा यह बात सुनाता है और सतवन से कहता  है कोई बात नहीं हम छेद में चिपक जायेंगे जैसे-जैसे पानी कम होता जाएगा हम मटके से निकलकर नदी चले आएंगे| सतवन मेंढक राजा को उनको धन्यवाद देता है| बड़ा भाई कहता है| चल अब मांस और भात पका| सतवन मांस पकता है| चावल पकाता है| फिर बड़ा भाई कहता है| सतवन हम लोगों के कपडे बहुत गंदे हो गए है तुम इन कपड़ों को बिना साबुन और बिना पत्थर के साफ कर लाओ| गठरी भर कपडे लेकर नदी में जाता है| विलाप करता है| तब कछुआ कहता है मनसुतिया तू क्यों रो रहा है| मुझे अपनी समस्या बता मैं मदद करूंगा| यह बात वही पर बगुला भी मछली पर नज़र लगाये हुए सुनता है और कहता है हाँ मैं भी मदद कर दूंगा| सतवन बताता है कि मेरे बड़े भाइयों ने कहा है कपड़ों को बिना साबुन और पत्थर के साफ कर के लाना है| बगुला कहता है बस तू मेंरे पंख छु-छूकर कपडे धोना साबुन कि जरूरत नहीं पड़ेगी| और कछुआ कहता है कि मेरी पीठ को पत्थर कि जगह कपडे पटकना| कपडे झक्क सफ़ेद हो जाते है| सतवन कपडे धोने के बाद रोने लगता है वहीँ नदी के पाट पर बैठ जाता है तब केकड़ा और झींगा मछली आती है| अब क्या हुआ पूछती है क्या हुआसतवन  पूरी कहानी सुनाता है कि अब अगर मै घर जाऊँगा तो मुझे अपनी प्यारी बहन के मांस खाने के लिए कहेंगे तो मै क्या करूंगा| तुम्हारी समस्या हम ख़त्म करेंगे| झींगा कहती है कि जिस समय मांस खाने को कहेंगे तब मुझे खाना और केकड़ा कहता है कि जब हड्डी चबायेगे तब मुझे चबाना तो कोई शक नहीं करेगा| सतवन झींगा और केकड़े को मारता है घर आता है झींगा और केकड़े को पकाता है| कि चल अब मांस और भात को पका| सब को भोजन ककेर पान के पत्तलों में परोसों| सतवन वैसा ही करता है | बड़ा भाई कहता है कि तुम भी खाओगे| अपने पत्तल में झींगा और केकड़ा छुपाकर रख लेता है| बड़ा भाई सतवन को सुंदरिया का ह्रदय अलग से देता है जिसे सतवन एक पत्तल में छिपा देता है| जब सब भोजनकर सोने चले जाते है तब सतवन रात के अँधेरे में सुंदरिया का ह्रदय जंगल में गाड देता| कहता है मै तुम्हें तिलांजलि देता हूँ फिर बारिश का मौसम आता है तब वहां पर एक पौधा अंकुरित होता है| कुछ दिनों के बाद अहीर जो कि जंगल में अपनी गाय और भैंस चराने जाता है| उसे एक झाड़ी से गाना सुनाई देता है| उस पौधे की एक टहनी को काट लेता है| और उससे सुरीली बांसुरी बनाता है| बांसुरी सुरीली है| एक दिन बाँसुरी को बजता हुआ सतवन के घर के सामने से जाता है तब बांसुरी से अपनेआप स्वर निकलते है|
(गीत)
सात भैइयन के हम हन बहिनी, मार दिया मन मार|
घरबार  सभारन, दौरिउ नाधन, करन चेरौरी, बहु बार||
एक सुधि आवे, जेवना बनत के, भईया भईया कही हम भईया|
कब देखि लेई सतवन भईया का, कलेवा हूँ लाई तोही नटे||
भईया तेने जुलुम कर डाला, हमको दिया कपट से मार|
धोखे से मोही मार लिया, आसा पे पानी फेर दिया||
इक जननी ने जाया हमको, दुनिया मा कोन हमार|
इन नैनन को प्यारे थे, भैइया, लोगे कब सुधि हमार||
अहीर बांसुरी को डरकर फेंक देता है| उसे सतावन उठाकर अपने ह्रदय से लगा लेता है और घर में सुरक्षित रखा लेता है| भाइयों के साथ खेत में काम करने जाता है बांसुरी से सुंदरिया निकलती है और घर का काम कराती है और भोजन भी पका देती है| दोपहर सब भाई घर आते है| तो देखकर दंग रह जाते है आज तो सतावन ने ठीक किया कि सुबह ही भोजन बना लिया| सतवन डर से कुछ नहीं बोला| सब ने खाना खाया तो भोजन गरम था ऐसा ही कई दिनों तक चलता रहा सतावन को बहन सुंदरिया के हांथों के बनाये भोजन का स्वाद मिलता है| एक दिन सतावन बीमारी का बहाना बनता है| और खेत नहीं  जाता है पैरा के पीछे छुपकर देखता है घर का काम कौन करता है| तो देखता है कि बांसुरी से बहन सुंदरिया निकलती है और झाड़ू लगाति है उसी समय सुंदरिया की नज़र सतवन से मिल जाती है और सुंदरिया मुक्त हो जाती है अब मै कन्या के रूप में नहीं रह पाऊँगी| मुझे बांस ही बनना पड़ेगा| मुझे लोग बांसनि नाम से जानेगें|सतवन खूब रोता है| मैंने तुझे मारा है सुंदरी कहती है यह सब तो नियति है| यह तो होना ही था उपक्रम तुम बने| सतवन को आशीष दे जाती है लोग मुझे अपने घर से जितनी बार मारकर, काटकर बाहर निकालेगे पर मैं नहीं जाउंगी किसी किसी रूप में तुम्हारे जीवन में रहूंगी| संस्कार मेरे बिना संभव नहीं है| और तब से ही लड़की के जन्म में बांस के सूप में रखा जाता है विवाह में बांस का ही सब सामान दिया जाता है और जब इन्सान मरता है तब भी टिकठी भी बाँस की ही होती है|
जादू बरहक कोई नहीं जाने, करनी का फल तू पावेगा|
जंतर कोई ताल बजावे, नहिं उजड़त इक बाल||
भाई बस में इस्तरह होता, काया दे मोहनी डार|
जलवा दूँ, जल में ही बांधू, बांधू निर्मल नीर|
सात समंदर कोट से बांधूं, बांधूं बावन बीर||

बांसनि के स्वर गूंजने लगते है लोग सुनते है| और सातवाँ को छोड़ बाकी छहों भाइयों का सर मुडाकर, दही लपेटकर गधे में बिठाकर गाँव से निकल देते है


लेखक - मनोज कुमार मिश्र
लोकनाट्य बघेलखण्ड

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