कहते है वो
पसन्द आई तेरी सिपहसालारी।
यहाँ तो मुद्दतों से बस खटते आये है।
न हो यकीन तो?
घरों की दीवारों से पूंछ लो।
उस पर न मेरा हक़ है न तस्वीर....................….............
गुलाम का ख़त
रविवार, 30 अप्रैल 2017
मज़दूर दिवस
लेबल:
मंच,
मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र,
मनोज,
रंगमंच,
रूपक
1 मई मज़दूर दिवस
1 मई
कहते हो तो तुम सामने मेरे कहते हो
गढ़ता हूँ मैं
रचता हूँ मैं
पर
पीठ पीछे मेरी ही तुम मुझे मज़दूर कहते हो
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