गुरुवार, 22 अगस्त 2024

कला के नाम

कला की भक्ति आत्म का रुपांतरण मुक्त करने की बात करती है।

भक्ति का फूल प्रेम के पौधे में खिलता है और  शनैः शनैः निखरता है l यदि कला के प्रति तुम्हारा प्रेम गहरा हो तो कला का भाव अर्थपूर्ण  हो जाता है यह इतना  अर्थपूर्ण हो जाता है कि हम कला को ही अपना भगवान अपना इष्ट कहने लगते हैं l यही कारण है कि मीरा, सूरदास, रहीम, तुलसीदास आदि अपने अपने इष्ट को प्रभु कहते जाते है l इष्ट को न कोई देख सकता है, और न कोई साक्षात सिद्ध कर सकता है कि कृष्ण या राम वहां हैं; इधर मीरा, सूरदास, रहीम या तुलसीदास इस प्रेम को  सिद्ध करने में उत्सुक भी नहीं है। सबने अपने इष्ट को ही अपने निःस्वार्थ प्रेम का विशेष पात्र बना लिया है l
 और याद रहे, हम जब किसी यथार्थ व्यक्ति को अपने प्रेम का पात्र बनाते है या किसी कल्पना के व्यक्ति को, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है l कारण यह है कि यह दृश्य रूप में सारा रुपांतरण भक्ति के माध्यम से आता है, प्रेम में पात्र के माध्यम से नहीं l इस बात को सदा स्मरण रखो की यहां  कृष्ण या राम की शारीरिक उपस्थिति आवश्यक नहीं हैं; प्रेम के लिए शारिरिक उपस्थिति अप्रासंगिक है l हम एक बात जोर देकर कहना चाहते हैं कि इष्ट के होने या न होने का प्रश्न नहीं है, बिल्कुल नहीं है, भाव ही इष्ट है, समग्र प्रेम का भाव,  समग्र समर्पण, किसी में अपने को विलीन कर देना, चाहे वह हो या ना हो, विलीन हो जाना ही रुपांतरण है l अचानक व्यक्ति शुद्ध हो जाता है, समग्ररूपेण शुद्ध हो जाता है l क्योंकि जब अहंकार ही नहीं है तो तुम किसी रूप में भी अशुद्ध नहीं हो सकते l अहंकार ही सब अशुद्धि का बीज है l भाव के जगत के लिए, भक्त के जगत के लिए अहंकार रोग है। अहंकार एक ही उपाय से विसर्जित होता है _  कोई दूसरा उपाय नहीं है_वह उपाय यह है कि कला इतनी महत्वपूर्ण हो जाएं इतनी महिमापूर्ण हो जाएं कि हम धीरे-धीरे विलीन हो जाएं, और एक दिन हम बिल्कुल ही न बचे, सिर्फ हमारा बोध रह जाए l और जब हमही न रहे तब  कला सिर्फ कला नहीं रह जाती है क्योंकि कला तब तक अलग है जब तक हम अलग हैं l 
जब मैं इस नश्वर संसार से विदा होऊंगा तब मेरे साथ ही मेरी इष्ट कला  तू भी विदा हो जाएगीl अर्थात प्रेम भक्ति बन जाएगाl प्रेम ही इष्ट से साक्षात्कार का पहला कदम है।

मंगलवार, 7 मई 2024

जीवन

जीवन में सिर्फ सुबह और रात होती है।
मुस्कुराते, मुस्कुराते ही वो चले जाते हैं।

मनोज कुमार मिश्रा